एक अलिखित युद्ध घटना पर आधारित फिल्म द गाजी अटैक, जो लंबे समय से चर्चा का केंद्र बनी हुई है, रिलीज हो चुकी है। सिल्वर स्क्रीन पर लड़े जा रहे युद्ध में भारत भी है और पाकिस्तान भी। लेकिन, इस बार लड़ाई पानी के भीतर पूरे जोश ओ होश के साथ लड़ी जा रही है। इस लड़ाई में बंगाल की खड़ी के बीच एक तरफ भारतीय नौसेना के शौर्य का प्रतीक आईएनएस विक्रांत एस-21 है तो दूसरी ओर पाकिस्तानी पोत पीएनएस गाजी।
‘द गाजी अटैक’ की शुरूआत भारत और पाकिस्तान की राजनीतिक परिस्थितियों के साथ होती है। भारत को अपने पड़ोसी मुल्क के इरादों पर शक है। इस शक से निबटने के लिए कमांडर रणविजय सिंह (कै कै मेनन) को एक गुप्त मिशन का जिम्मा सौंपा जाता है। लेकिन, इस मिशन में कमांडर रणविजय सिंह के साथ लेफ्टिनेंट कमांडर अर्जुन वर्मा (राणा डग्गुबाटी) और एग्जीक्यूटिव अफसर देवराज (अतुल कुलकर्णी) जैसे नौसेना अधिकारी भी हैं। इन तीनों का अपना अपना स्वभाव है, जैसे रणविजय गरम दिमाग का, अर्जुन वर्मा शांत दिमाग का और देवराज संतुलित। यह तिक्कड़ी फिल्म की कहानी को और मजेदार बना देती है।
फिल्म द गाजी अटैक का पहला भाग रणनीति बनाने और अधिकारियों की उलझनों में गुजरता था और फिल्म के दूसरे भाग में दर्शक खुद को किरदारों के साथ जोड़ते हुए जोश खरोश से भरे हुए महसूस करेंगे। असल में कहें तो दूसरे भाग में फिल्म अपने यौवन पर आती है।
अभिनय की बात करें तो कै कै मेनन का अभिनय बेहद जबरदस्त है। अभिनेता राणा दग्गुबाटी भी अपने किरदार में किसी से कमतर नहीं हैं। अतुल कुलकर्णी ने देवराज के किरदार को पर्दे पर जीवंत कर दिया। वहीं, तापसी पन्नु के लिए फिल्म में करने के लिए अधिक कुछ नहीं है।
निर्देशक संकल्प रेड्डी का निर्देशन सलामी का हकदार है। असल में कहें तो सिल्वर स्क्रीन रूपी कैनवास पर लेखक और नवोदित फिल्मकार संकल्प रेड्डी ने अपनी कल्पना शक्ति की कूची से ‘द गाजी अटैक’ के रूप में समुद्री युद्ध, जो भारतीय नौसेना की बहादुरी का प्रतीक है, का बेहद मनोरम काल्पनिक चित्र उकेरा है।
बेहतरीन अभिनय, शानदार निर्देशन और भारतीय नौसेना की अनकही कहानी को किसी की कल्पना के माध्यम से ही सही समझने के लिए द गाजी अटैक देखनी चाहिये। हमारी तरफ से द गाजी अटैक को पांच में से तीन स्टार दिए जाते हैं।