फिल्मकार नीतेश तिवारी निर्देशित और अभिनेता आमिर खान अभिनीत दंगल सिनेमा घरों में अपनी कुश्ती शुरू कर चुकी है। जैसे अभिनेता आमिर खान शुरू से कहते आ रहे हैं कि फिल्म दंगल केवल कुश्ती के बारे में नहीं बल्कि महिला सशक्तिकरण के बारे में भी है। फिल्म दंगल में हंसना भी है, रोना भी है, संघर्ष भी है और जोश भी।
फिल्म की कहानी के केंद्र में हरियाणा का पहलवान महावीर सिंह फोगट है, जो अपनी संतान को कुश्ती में आगे बढ़ते हुए देखना चाहता है। लेकिन, महावीर सिंह फोगट के घर बेटे की चाह के चक्कर में चार बेटियां जन्म ले लेती हैं। अचानक एक दिन महावीर को एहसास होता है, जो काम मैं अपने बेटे से करवाना चाहता था, क्यों ना? अपनी बेटियों से करवाऊं। बस इसके बाद महावीर अपनी बेटियों को तैयार करने में जुट जाता है। रोचक घटनाओं के साथ कहानी आगे बढ़ती और अंत तक दर्शकों को बांधे रखती है।
फिल्मकार नीतेश तिवारी को बेहतरीन निर्देशन के लिए बधाई देना बनता है। आमिर खान जैसे बड़े सितारे के साथ नीतेश तिवारी ने निर्भय होकर अपना कार्य किया, जो फिल्म देखते हुए साफ झलकता है। नीतेश तिवारी के निर्देशन कौशल के कारण कहीं भी आमिर खान जैसा बड़ा सितारा छोटे सितारों पर हावी नहीं होता। नतीजन, फातिमा सना शेख, सान्या मल्होत्रा, साक्षी तंवर भी अपने किरदारों में खूब जंचते हैं।
अपारशक्ति खुराना सहयोगी अभिनेता के रूप में गजब कर रहे हैं। कॉमिक टाइमिंग जबरदस्त। सूत्रधार के रूप में बढ़िया हैं। किशोर कलाकारों ने भी गजब का अभिनय किया है। भावनात्मक दृश्यों पर बेजोड़ काम किया गया है। कई दृश्य तो ऐसे हैं जो बिना संवाद भी आंखों से पानी टपका देते हैं।
फिल्म दंगल को सतही बनाने की बिलकुल कोशिश नहीं की गई। इसको नंगेज फूहड़ता से पूरी तरह बचाकर रखा गया है। गुंडागर्दी, गाली गालौच के बिना भी फिल्म को शानदार बनाया जा सकता है, इस बात का एहसास दंगल देखकर होता है। कुल मिलाकर फिल्म को परिवार के साथ देखने जाने में कोई बुराई नहीं। आमिर खान की दंगल एक सार्थक फिल्म है, जो समय की जरूरत है।
फिल्म का हर पक्ष देखने के बाद हम इस नतीजे पर पहुंचते हैं कि फिल्म दंगल को पांच में से साढ़े तीन सितारों के साथ बाइज्जत एक सार्थक फिल्म करार दिया जाए।