बड़े अफसोस की बात है कि पिछले कुछ दिनों से सिने प्रतिभाओं को दिए जाने वाले स्थापित कुछ फिल्म पुरस्कारों की विश्वसनीयता पर सवाल उठ रहे हैं।
अक्षय कुमार को पुरस्कृत न किए जाने के कारण ट्विटर पर खूब शोर मचा। वहीं, दिलजीत दुसांझ को नवोदित अभिनेता के रूप में सम्मानित किए जाने को लेकर हर्षवर्धन कपूर ने तीखे ट्विट कर डाले।
हाल ही में रिलीज हुई अपनी आत्मकथा खुल्लम खुल्ला में अभिनेता ऋषि कपूर ने चौंकाने वाला खुलासा किया कि उन्होंने अपनी पहली फिल्म बॉबी के लिए सर्वश्रेष्ठ अभिनेता का खिताब 30,000 रुपये में खरीदा था।
ऐसे में पुरस्कारों की विश्वसनीयता पर सवाल उठने आम बात है। ऐसे माहौल के बीच सितारे क्या सोचते हैं? के बारे में जानने के लिए वरिष्ठ सिने पत्रकार सुभाष के. झा ने कुछ सिने हस्तियों से बातचीत की और उनका पक्ष जानने की कोशिश की।
अभिनेत्री राखी ने कहा, ‘जब मुझे बताया गया कि मुझे फिल्म ‘बेईमान’ के लिए सर्वश्रेष्ठ अभिनेत्री के लिए पुरस्कार मिल रहा है, तो मैंने कहा कि मैं इसे स्वीकार नहीं कर सकती। पहले उन्होंने मुझे फिल्म ‘शर्मीली’ के लिए पुरस्कार देने से मना कर दिया था, जिसमें मैंने सोचा था कि मेरा प्रदर्शन सराहनीय है।”
राखी आगे कहती हैं, ‘उन्होंने फिल्म ‘कटी पतंग’ के लिए आशा पारेख को पुरस्कार दिया। हैरानी की बात है कि फिल्म ‘शर्मीली’ के संगीत के लिए सचिन देव बर्मन को सर्वश्रेष्ठ संगीत का पुरस्कार नहीं दिया गया।’
पिंक अभिनेत्री तापसी पन्नू ने कहा, ‘मेरे लिए पुरस्कार अद्भुत टेलीविजन कार्यक्रम हैं। ये पुरस्कार आपके कमरे की अलमारियों पर अच्छे लगते हैं।’
तिलोत्तमा शोम ने कहा, ‘मैं लोकप्रिय पुरस्कारों के बारे में नहीं जानती, क्योंकि कभी मेरा किसी पुरस्कार के लिए नामांकन नहीं हुआ। यदि मैं कोई पुरस्कार जीतती हूं तो इसे अद्भुत बिरादरी के हिस्से के रूप में स्वीकार करूंगी।’
हेराफेरी अभिनेता परेश रावल का कहना है, ‘लोकप्रिय पुरस्कार बेकार हैं। ये बड़ी मार्केटिंग कार्यक्रमों के आयोजन हैं, जिनका कोई अस्तित्व नहीं है। इसकी सबसे बड़ी भूल मेरी फिल्म ‘ओह माय गॉड’ थी, जिसे लोकप्रिय पुरस्कारों में एक भी नामांकन नहीं मिला।’
फिल्मकार सुभाष घई ने कहा, ‘लोकप्रिय पुरस्कार लंबे समय से अपनी विश्वसनीयता खो रहे हैं। फिल्मफेयर पहला पुरस्कार था, जो एक गुटका ब्रांड के साथ मिलकर व्यावसायिक हो गया। हालांकि, ऑस्कर ने अभी भी प्रमाणिकता बनाए रखी है। मैं पुरस्कार समारोहों में तभी उत्साहित होता हूं, जब सर्वश्रेष्ठ नवोदित कलाकार को पुरस्कार मिलता है। इसका मतलब नई प्रतिभा सामने आ रही है।’
सौरभ शुक्ला ने कहा, ‘यहां कई सारे पुरस्कार हैं। किसी भी चीज की अधिकता से बोरियत होने लगती है। यदि आप साल में सात बार होली खेलो, तो फिर होली के लिए कोई उत्साह नहीं रहेगा। पुरस्कार प्रतिभाओं का त्योहार है।’
सतीश कौशिक ने कहा, ‘पुरस्कार समारोह रियलिटी शो बन गए हैं। मैं उन दिनों को याद करता हूं जब इंडस्ट्री में केवल एक फिल्मफेयर पुरस्कार समारोह होता था और पूरी इंडस्ट्री उसका इंतजार करती थी।’
प्रसून जोशी ने कहा, ‘पुरस्कार समारोह टेलीविजन समारोह जैसे हो गए हैं। इसे दर्शकों के मनोरंजन के हिसाब से बनाया जाता है। हालांकि, मुझे लगता है कि राष्ट्रीय पुरस्कार इससे अलग है। यह मार्केटिंग टूल नहीं है।’
-आईएएनएस