जवानी जानेमन का पोस्टर देखकर कह सकते हैं कि सैफ अली खान को ऐसी रोमांटिक फिल्मों से दूर रहना चाहिए क्योंकि सैफ अली खान जवानी जानेमन से काफी उम्र मील आगे निकल चुके हैं, भले ही जवान करीना कपूर के साथ हाल ही के सालों में शादी की हो।
लेकिन, सैफ अली खान और अलाया फर्नीचरवाला अभिनीत जवानी जानेमन की कहानी पोस्टर के विपरीत बाप बेटी का ऐसा इमोशनल ड्रामा है, जो आपको सिनेमा हाल में अजीबोगरीब हरकतों पर गुदगुदाने और भावनात्मक सीनों पर आंख नमन करने का मौका देता है। पंजाबी गीतों और संवादों से सराबोर जवानी जानेमन बोर नहीं करती, हालांकि, यह एक वेस्टर्न फिल्म है।
जवानी जानेमन को वेस्टर्न फिल्म क्यों कह रहा हूं? दरअसल जवानी जानेमन की कहानी कम्पलीट फैमिली की नहीं बल्कि कॉम्पलिकेटड फैमिली की कहानी है, जो भारत में नहीं, पश्चिमी देशों में आम पाई जाती है। लेकिन, इस कहानी का संबंध एक प्रवासी भारतीय परिवार से है।
कहानी यूं है कि एक पब क्लब में एक 21 वर्षीय युवती एक चालीस वर्षीय व्यभिचारी जैज से बात करने लगती है। जैज युवती टिया की सुंदरता से प्रभावित होता है। टिया जैज को शांत जगह पर जाकर बात करने का ऑफर देती है, जिसको जैज खुशी खुशी लपकते हुए टिया को अपने घर आने के लिए पूछता है। जहां शारीरिक संबंध बनाने के लिए आतुर जैज के होश उस समय उड़ जाते हैं, जब टिया जैज को बताती है कि जैज उसका बायोलॉजिक फादर भी हो सकता है।
इतना सुनते ही जैज के पैरों तले जमीन खिसक जाती है। खिसके भी क्यों नहीं, जिस युवती के साथ संबंध बनाने के लिए जैज का मन आतुर हो रहा था, यदि सच में उसकी बेटी निकलती तो? टिया और जैज डीएनए जांच करवाते हैं। डीएनए जांच जैज को एक साथ दो खुशख़बरियां देती है, एक पिता बनने की और एक जल्द ही नाना बनने की।
क्या जैज टिया को अपनी बेटी के रूप में स्वीकार करेगा, जो बिन ब्याही मां बनने की कगार पर खड़ी है? क्या जैज के परिवार में इस बात को लेकर हलचल पैदा होगी? क्या जैज की कुंवारे वाली आजादी छीन जाएगी? ऐसे तमाम सवालों के जवाब नितिन कक्कड़ की जवानी जानेमन में छुपे हैं।
बाप बेटी की उलझन के अलावा रिया और जैज का रिश्ता महिला और पुरुष की पक्की दोस्ती को इंगित करता है, जो बताता है कि जरूरी नहीं कि जो महिला आपकी दोस्त है, वो आपसे शारीरिक सुख की ही इच्छा रखे। भाई भाई होता है, ये बात डिंपी उस समय सिद्ध करता है, जब डिंपी अपने भाई जैज की एक बात के लिए करोड़ों के प्रोजेक्ट को बिना सोचे ठुकरा देता है।
नितिन कक्कड़ का निर्देशन उम्दा है। कलाकारों से बेहतरीन काम लिया है। फिल्म का संपादन भी सधा हुआ है। हालांकि, एक दो जगह कहानी पटरी से उतरती है। फिल्म को हुस्सैन दलाल ने लिखा है, जो गंभीर कहानी को हास्य भरी परस्थितियों के साथ कहने में सफल हुए हैं। फिल्म का नायक व्यभिचारी है, लेकिन, फिल्म को बैडरूम सीनों और दोअर्थी संवादों को दूर रखा गया है। संवादों पर अच्छा काम हुआ है।
सैफ अली खान ने व्यभिचारी किरदार पहले भी अदा किए हैं, लेकिन, इस बार सैफ अली खान के लिए चुनौती थी कि उसको व्यभिचारी होने के साथ साथ एक पिता का किरदार भी निभाना था, जो सैफ अली खान ने बेहतरीन तरीके से निभाया। नवोदित अदाकारा अलाया फर्नीचर वाला का गेटअप, अभिनय और शारीरिक भाषा तीनों टिया के किरदार को पर्दे पर जीवंत करते हैं। तब्बू की भूमिका छोटी है, लेकिन, कम प्रभावशाली नहीं है। इसके अलावा अन्य कलाकारों जैसे कि कुमुद मिश्रा, कुब्बरा सैत, चंकी पांडे, कीकू शारदा, फरीदा जलाल ने भी अपने अपने किरदारों के साथ न्याय किया है।
बॉक्स ऑफिस पर खामियों की बात करूं तो ये फिल्म अपने पोस्टर के कारण सही दर्शकों को खींचने में असफल हो सकती है, जैसे कि पहले ही बता चुका हूं कि फिल्म का पोस्टर और कहानी दोनों विपरीत हैं। फिल्म में पंजाबी गीतों और संवादों पर अधिक बल दिया गया है, जो पंजाबी नहीं समझने वाले हिंदी सिने दर्शकों को निराश कर सकता है। फिल्म का प्रमोशन उस तरीके से नहीं किया गया, जिस तरीके से होना चाहिए, या कहें जैसे कि आजकल होता है।
कुल मिलाकर कहूं तो जवानी जानेमन बाप बेटी का इमोशनल ड्रामा है, जो कभी खुशी कभी गम का एहसास करते हुए एक खुशनुमा मंजिल पर छोड़ता है।