सोशल मीडियाई छिछोरों के निशाने पर करीना कपूर क्‍यों?

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मुम्‍बई। करीना कपूर के घर खुशी का माहौल है। करीना कपूर के पिता अत्‍यंत खुश हैं। सैफ अली खान तीसरी बार पिता बनकर खुश हैं। लेकिन, ऐसे में एक तबका है, जो नाराज है। यह तबका सोशल मीडियाई चौराहे पर बैठता है। यह किराये की भीड़ भी हो सकती है या भेड़ चाल की भीड़। इनकी हरकतें गली चौराहे पर खड़े छिछोरों जैसी ही हैं, जो आती जाती लड़कियों पर छींटाकशी करते हैं।

करीना कपूर पहली बार मां बनी है। यकीनन मां बनने का अहसास कुछ खास होता है। मगर, मर्द जात इससे हमेशा अनजान रहती है। करीना कपूर ने अपने बेटे का नाम तैमूर अली खान पटौदी रखा। सोशल मीडिया के फुरसतियों को तैमूर नाम पसंद नहीं। ये ऐसे व्‍यवहार कर रहे हैं, जैसे करीना कपूर ने सैफ अली खान के साथ शादी भी इनसे पूछकर की हो या इसमें इनका कोई योगदान लिया हो।

संतान का नाम रखना परिवार का एक निजी फैसला है। यह परिवार की अपनी निजी मर्जी है कि वो बच्‍चे का नाम तैमूर रखें या स्‍टालिन या भगत सिंह। लेकिन, लोग पुराने तैमूर को याद करने बैठ गए। उसके गुनाहों को नवजन्‍मे बच्‍चे के नाम में देखने लग गए। राम नाम रख लेने से हर कोई नाम नहीं हो जाता और मुहम्‍मद नाम रख लेने से कोई मुहम्‍मद नहीं।

लेकिन, मसला नाम का नहीं। मसला पुराना है। मसला, लव जेहाद का है। एक हिंदु लड़की की कोख से तैमूर के जन्‍म का है। दिक्‍कत करीना और सैफ के मिलन से है। कल जन्‍मे तैमूर से वरना किसी को क्‍या दिक्‍कत हो सकती है। ट्वटिर पर तैमूर का विरोध करने वालों की लेखन शैली बताती है कि गली चौराहों पर बैठने वाले छिछोरों की भीड़ सोशल मीडिया पर आ चुकी है।

एक ने लिखा है, ‘जिस करीना ने मुँह बनाके 3 idiots में “चांचड़” और “वाइन्डु” जैसे नाम रखने से मना कर दिया था, आज उसने अपने बेटे का नाम #Taimur रखा है।’

तो दूसरे ने लिखा, ‘ऐश्वर्या राय बच गई वरना इनकी बेटी का भी नाम आराध्या के बजाय फातिमा खातून होता| #taimur’

ऐसे कई ट्वीट मिल जाएंगे जो सीधे सीधे भीतर की भड़ास को बाहर निकाल रहे हैं। जैसे कि पहले ही कहा कि कल जन्‍मे तैमूर ने किसी की लाशें नहीं बिछाई।

इस नवजन्‍मे तैमूर का कल बहुत दूर है। उसका सब कुछ भविष्‍य की कोख में छुपा हुआ है, जैसे वह 20 दिसंबर तक अपनी मां करीना कपूर की कोख में। और कोख से निकलते ही तैमूर अली खान पटौदी हो गया। और नामकरण के साथ ही छिछोरों के सीनों पर सांप की तरह लोटने लगा।

दोष तैमूर का नहीं, दोष उस सोच का है, जो समाज में पनपती है। दो आज भी हिंदु मुस्‍लिम में एक बड़ी लकीर खींचे हुए है, जो समय के साथ मिटने की बजाय चौड़ी होती जा रही है। इनकी आंखों में तैमूर कंकर की तरह खटक रहा है क्‍योंकि सैफीना की शादी का प्रतीक है। एक हिंदु लड़की और एक मुस्‍लिम लड़के की शादी का प्रतीक है।