संजय लीला भंसाली ने किया पाप, और केंद्रीय सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय ने पुण्य?

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संयोग कहो या कुछ और। एक ही समय पर दो घटनाएं घटित हो रही हैं। यह दोनों घटनाएं एक ही जैसी हैं। लेकिन, दोनों को हैंडल करने के तरीके अलग अलग हैं और मापदंड भी। एक घटना में केंद्रीय फिल्म प्रमाण बोर्ड की ओर से प्रमाण पत्र हासिल कर चुकी एस दुर्गा है तो दूसरी घटना में पद्मावती।

एस दुर्गा का विरोध भी हो रहा है और पद्मावती का विरोध भी। एस दुर्गा को रोकने के लिए सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय लगा हुआ है जबकि पद्मावती का विरोध जनता की ओर से है।

इस मामले में दिलचस्प बात तो यह है ​कि​ फिल्मकार संजय लीला भंसाली जनता को शांत करने के लिए कुछ विशेष लोगों के लिए निजी स्क्रीनिंग रखते हैं, जो केंद्रीय फिल्म प्रमाणन बोर्ड के पूर्व अध्यक्ष पहलाज निहलानी के मुताबिक एकदम कानूनी है। हालांकि, इस स्क्रीनिंग को केंद्रीय फिल्म प्रमाणन बोर्ड के अध्यक्ष प्रसून जोशी कानून का उल्लंघन कहते हैं और आपत्ति भी दर्ज करवाते हैं।

वहीं, दूसरी ओर केंद्रीय सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय आईएफएफआई के 48वें संस्करण की ज्यूरी में से तीन सदस्यों के निकल जाने के बाद बड़ी चालाकी से जी न्यूज के चीफ इन एडिटर को ज्यूरी में शामिल करता है। फिल्मोत्सव ज्यूरी रिव्यू में फिल्म एस दुर्गा को 7 मत समर्थन और 4 विरोध में मिलते हैं। इसके बावजूद एस दुर्गा की स्क्रीनिंग रोक दी जाती है। रोकने का कारण फिल्म शीर्षक का दोषपूर्ण होना। यहां ज्यूरी ही नहीं, बल्कि केरल हाईकोर्ट का वो फैसला भी हार जाता है, जो कहता है कि फिल्म की स्क्रीनिंग होनी चाहिये।

लेकिन, हैरानी तब होती है, जब फिल्मोत्सव खत्म होने के कुछ दिनों बाद जी न्यूज के चीफ इन एडिटर सुधीर चौधरी अपने लोकप्रिय टीवी शो डीएनए में वो ही काम करते हैं, जो फिल्म पद्मावती की स्क्रीनिंग के बाद इंडिया टीवी के रजत शर्मा और रिपब्लिक टीवी के अर्णब गोस्वामी ने अपने अपने कार्यक्रमों में किया।

यहां अगर कुछ अंतर है तो बस इतना सा कि जी न्यूज के चीफ इन एडिटर सुधीर चौधरी फिल्म एस दुर्गा के विरोध में बात रख रहे हैं जबकि रजत शर्मा और अर्णब गोस्वामी पद्मावती के पक्ष में बात रखते हुए लोगों को शांत होने के लिए अपील कर रहे हैं।

सवाल उठता है कि क्या केंद्रीय फिल्म प्रमाणन बोर्ड के चेयरमैन प्रसून जोशी केंद्रीय सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय की इस गतिविधि पर पद्मावती की स्क्रीनिंग जैसी प्रतिक्रिया देंगे? क्योंकि इस फिल्म की स्क्रीनिंग निर्देशक सनल कुमार शशिधरन ने नहीं बल्कि केंद्रीय सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय ने करवायी है, और साथ ही केंद्रीय फिल्म प्रमाणन बोर्ड इस फिल्म के प्रमाणन पत्र पर दूसरी पर विचार कर रहा है, क्योंकि शीर्षक में आपत्ति के कारण फिल्म की स्क्रीनिंग रोकी गई है।

यह तो वो ही बात हुई कि हम करे तो रासलीला, तुम करो तो कैरेक्टर ढीला। संजय लीला भंसाली ने किया तो पाप, और केंद्रीय सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय ने किया तो पुण्य?

इतना ही नहीं, अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर​ फिल्म पद्मावती के समर्थन में फिल्म जगत का विरोध प्रदर्शन भी चोंचला भर लगता है क्योंकि फिल्म जगत पद्मावती के समर्थन में तो उतरता है, जिसका विरोध जनता कर रही है, जहां पर फिल्म रिलीज होने के बाद हिंसक घटनाएं होने की संभावना है।

लेकिन, फिल्म एस दुर्गा के मामले पर चुपी साध लेता है, जिसका प्रदर्शन रोकने के लिए केंद्रीय सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय अदालतीय फैसले को भी नजरअंदाज करने के लिए ट्रिक खेल जाता है। एस दुर्गा को केंद्रीय ​सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय रोक रहा है तो अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को कोई ख़तरा नहीं है और पद्मावती का विरोध जनता कर रही है, तो अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को घनघोर ख़तरा मालूम पड़ता है।

यहां भी खूबसूरत बात यह है कि फिल्म जगत की अगुवाई करने वाली बहुत सारी एसोसिएशनों के अगुआ वर्तमान केंद्रीय सरकार के पैरोकार हैं। ऐसे में सरकार की ओर से किए जाने वाले दमन पर चुप न रहें तो क्या करें?

केंद्रीय फिल्म प्रमाणन बोर्ड के पूर्व अध्यक्ष पहलाज निहलानी केंद्रीय सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय की दबंगई का कच्चा चिट्ठा खोल चुके हैं। यदि केंद्रीय सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय ऐसे ही हंटर चलाना है, तो केंद्रीय फिल्म प्रमाणन बोर्ड के होने और न होने में क्या है अंतर?

टिप्पणीकार/कुलवंत हैप्पी