फिल्म बरेली की बर्फी त्रिकोणी प्रेम कथा नहीं बल्कि लड़कों की तरह मिश्रा सदन में पली बढ़ी लड़की बिट्टी की व्यथा है, जो मां बाप के घर पर लड़कों की तरह बड़ी तो हो गई, लेकिन, अब उसको शादी करके ऐसे में समाज में जाना है, जहां पर उसको ऐसे स्वीकार करना मुश्किल है। इस बात को विस्तार देते हुए अश्विनी अय्यर तिवारी नितेश तिवारी, श्रेयस जैन के साथ मिलकर बरेली की बर्फी गढ़ती हैं।
बरेली के एकता नगर में मिश्रा सदन। मिश्रा सदन में तीन जन, तीनों स्वभाव से जुदा जुदा हैं। मिश्रा परिवार की एकलौती बेटी बिट्टी मिश्रा, जिसका पालन पोषण लड़कों की तरह हुआ है। खाने पीने की आजादी, रातों को मटरगश्ती की आजादी, लड़कों की तरह हर चीज करने की आजादी है, बिट्टी को। ऐसे देखें तो बिट्टी का जीवन एकदम बिंदास है।
लेकिन, समस्या तब आन खड़ी होती है, जब बिट्टी के ऐसे व्यवहार के कारण उसका कहीं भी रिश्ता नहीं हो पाता। अब बिट्टी घर से भागने का मन बनाती है। मगर, रेलवे स्टेशन पर बरेली की बर्फी नामक किताब मिलती है, जो बिट्टी को घर लौटने पर मजबूर कर देती है। बिट्टी को तलाश है, बरेली की बर्फी के लेखक प्रीतम विद्रोही की।
प्रीतम विद्रोही जो किताब प्रकाशित होने के बाद ही बरेली छोड़कर दूसरे शहर चला गया है। ऐसे में प्रीतम तक पहुंचने के लिए बिट्टी चिराग दुबे से मिलती है, जो किताब प्रकाशक है। चिराग दुबे और बिट्टी मिश्रा दोनों बार बार मिलते हैं। दोनों में दोस्ती हो जाती है। बिट्टी के लिए चिराग प्रीतम विद्रोही को बरेली लेकर आता है। प्रीतम चिराग का दोस्त है। चिराग को बिट्टी से प्यार होने लगता है, ऐसे में चिराग प्रीतम को ऐसा कुछ करने के लिए कहता है, जिससे बिट्टी का दिल टूट जाए और बिट्टी चिराग की हो जाए।
लेकिन, चिराग का दांव उस समय उलटा पड़ जाता है, जब प्रीतम चिराग के स्वार्थी रवैया से गुस्से होकर विद्रोह पर उतर आता है और बिट्टी से शादी करने की ठान लेता है। अब चिराग और प्रीतम नामक दो किनारों के बीच खड़ी बिट्टी नामक बोट किस किनारे पर जाएगी, यह जानने के लिए बरेली की बर्फी देखनी होगी।
निल बट्टे सन्नाटा निर्देशक अश्विनी अय्यर तिवारी का निर्देशन सधा हुआ है। अश्विनी ने फिल्म के हर कलाकार से बेहतरीन काम लिया है। फिल्म का स्क्रीनप्ले भी काफी बेहतरीन तरीके से लिखा गया है। हालांकि, फिल्म की कहानी में जो एक ट्विस्ट डाला गया है वो थोड़ा सा कमजोर है। वहां से कहानी पकड़ में आने लगती है।
बिट्टी के किरदार में कृति सेनन, चिराग दुबे के किरदार में आयुषमान खुराना, प्रीतम विद्रोही के किरदार में राजकुमार राव, बिट्टी के पिता के किरदार में पंकज त्रिपाठी और अन्य कलाकार भी किरदारों में एकदम फिट बैठते हैं। लेकिन, पंकज त्रिपाठी और राजकुमार राव का अभिनय सराहनीय है क्योंकि दोनों कलाकारों को फिल्म में दूसरे कलाकारों की तुलना में अधिक हवा भाव देने पड़े हैं। फिल्म के अंतिम पलों में कृति सेनन और आयुषमान खुराना का भावुक होना बरेली की बर्फी को स्वादिष्ट बनाता है।
फिल्म की सिनेमेटोग्राफी, बैकग्राउंड स्कोर, गीत संगीत और स्क्रीन प्ले एकदम बढ़िया है। यह एक रोमांटिक कॉमेडी ड्रामा फिल्म है, जो शुरू से अंत तक मनोरंजन करती है। एक बात तो पक्की है कि इस फिल्म को देखते हुए बोर नहीं होंगे। अगर फिल्म की रेटिंग की बात की जाए, तो फिल्म बरेली की बर्फी पांच में से तीन स्टार की हकदार है।
कुलवंत हैप्पी