‘लाल रंग’ देखें या नहीं

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रणदीप हुड्डा उम्‍दा अभिनेता हैं। सुपरस्‍टार नहीं, जो सिने खिड़की पर पहले ही दिन भीड़ खींच ले। रणदीप हुड्डा की लीड भूमिका वाली फिल्‍म ‘लाल रंग’ रिलीज हो चुकी है। ऐसी फिल्‍मों को चलने के लिए अभिनय के साथ साथ मजबूत कहानी और सशक्‍त निर्देशन की जरूरत होती है।

इसमें दो राय नहीं कि लाल रंग एक अलग विषय पर बनाई गई फिल्‍म है। मगर, विषय का अलग होना तब मात खा जाता है, जब निर्देशन और संपादन में चूक हो जाए। लाल रंग के साथ कुछ ऐसा ही हुआ है।

फिल्‍म में रणदीप हुड्डा शंकर रक्‍त माफिया के रूप में खूब जंचते हैं। रणदीप हुड्डा ने अपने किरदार के साथ पूरी तरह ईमानदारी बरती है। अक्षय ओबारॉय और पिया बाजपेई का अभिनय भी अद्भुत है।

मगर, सैयद अहमद अफज़ल निर्देशन में चूक गए। फिल्‍म कहीं दस्‍तावेजी न बन जाए, शायद इस बात के भय से उन्‍होंने फिल्‍म में मसाला डालने की कोशिश की, जो पूरी तरह उलटा पड़ता नजर आ रहा है।

कहानी में ठहराव काफी है, जो दर्शकों को उब सकता है। फिल्‍म की पटकथा को कसने की जरूरत थी। हरियाणवी शब्‍दों को कम इस्‍तेमाल होना चाहिए था, क्‍योंकि आप एक हिन्‍दी फिल्‍म बना रहे हैं। यदि हिन्‍दी दर्शकों के पल्‍ले ही कुछ नहीं पड़ेगा तो लाजमी है कि आपको निराश होना पड़ेगा।