बॉलीवुड आजकल साउथ-नार्थ, हिंदी-अहिंदी जैसी बहसों में, तो देश का मीडिया शिवलिंग और फ़व्वारे जैसी बेजा और बासी बहसों में उलझा हुआ है। ऐसे में कुछ ताज़ा और देश जिनसे बना है उन गाँवों की असल समस्याओं को देखना हो, तो पंचायत का दूसरा मौसम (पंचायत सीज़न 2) देख डालिए। पंचायत वेब सीरीज का अपना ही अलग जायका है क्योंकि यह वेब सीरीज आपको हंसाने के साथ-साथ चुपके-चुपके वो बातें भी कह जाती है, जिन पर आज के समय में गौर और विचार विमर्श करना जरूरी हो चुका है।
पंचायत वेब सीरीज देश के उन करोड़ों युवाओं की कहानी है
पंचायत वेब सीरीज देश के उन करोड़ों युवाओं की कहानी है, जो कॉर्पोरेट जॉब के लाखों के पैकेज के चक्कर में गांव से भागना चाहते हैं, और उन युवाओं की भी कहानी है, जो कॉर्पोरेट कल्चर से बोर होकर चिल करने के लिए गाँव आते हैं। दूसरे शब्दों में कहा जाए तो यह कहानी उस मिट्टी की कहानी है, जिसमें से आज भी 20-30 हजार की सैलरी में देश के लिए जान देने वाले ‘असली हीरो’ पैदा होते हैं, तो उस मिट्टी की भी कहानी है, जिससे भरी सड़कों से किसी ‘फुलेरा’ गांव पहुँचते हुए आप देश के किसी गांव की शौच, सड़क, सुरक्षा की आम समस्याएं देख व समझ पाएंगे।
सीज़न 2 की कहानी की शुरूआत उसी मोड़ से होती है, जहां पर सीज़न 1 ठहर गया था – गांव से सचिव जी का अलगाव। हालांकि, सचिव जी (जितेन्द्र कुमार) को गांव से भागना अब भी है, लेकिन अब गांव में रहना उनके लिए कोई ‘टास्क’ नहीं है। गांव के प्रधान बृज भूषण दुबे (रघुवीर यादव), उप प्रधान प्रह्लाद पांडे (फैसल मालिक), ऑफिस असिस्टेंट विकास (चंदन रॉय) से अब उनकी पक्की दोस्ती है। जिसके सहारे वे गांव की समस्याओं और वहां से पूरी तसल्ली से निपटते हैं।
हालांकि, दर्शकों को इस सीज़न में रिंकी (सान्विका) और सचिव जी की लव स्टोरी की ज्यादा उम्मीद थी, लेकिन उसको लेखक ने तीसरे सीज़न के लिए बचाकर रख दिया है। तीसरे सीज़न के लिए ही उभारे गए अन्य किरदारों जिसमें क्रांति देवी (सुनीता राजवर), उनके पति भूषण (दुर्गेश कुमार) और विधायक चंद्र किशोर सिंह (पंकज झा) ने भी अपने अपने किरदारों के साथ पूरा न्याय किया है। उनको और देखने की इच्छा होती है। और यही शायद लेखक-और निर्देशक की सोच भी हो। ऐसा है, तो इसमें वे पूरी तरह सफल रहें हैं।
यह पूरी सीरीज ही सचिव जी के नाम है। लेकिन अगर इस सीज़न की ही बात करें तो महफ़िल लूटने का काम ऑफिस सहायक की भूमिका में चंदन रॉय और उप-प्रधान की भूमिका में फैसल मालिक ने किया है। दोनों जिस भी फ्रेम में आए हैं, नज़रें उनपर ही टिकी रही हैं। फैसल का कैरेक्टर शिफ्ट कमाल का है। पूरी कहानी में जिस हलके-फुल्के कैरेक्टर में वे नज़र आए हैं, क्लाइमेक्स में उसके ठीक उलट बेहद इमोशनल कर, पूरी लाइमलाइट ले जाते हैं। ये तो पक्का है कि इस सीज़न के बाद इन दोनों के पास काम की कमी नहीं रहने वाली है।
चंदन कुमार की कहानी बताती है लाइफ़ में ‘Pushpa’ या ‘KGF’ की तरह सब कुछ ‘लार्जर दैन लाइफ़’ नहीं होता। असली हेरोइज्म सचिव जी जैसे पात्रों में भी हो सकता है। OTT पर ‘सेक्रेड गेम्स’, ‘पाताल लोक’ जैसी आंधियों के बीच ‘पंचायत’ अंगद पैर जमाने में कामयाब हुई है। साथ ही, इस वेब सीरीज की अच्छी बात यह है कि इसको किसी बंद कमरे में अकेले बैठकर पांच इंच की स्क्रीन पर नहीं, बल्कि घर के लिविंग रूम में किसी भी इंच की टेलीविजन स्क्रीन पर सपरिवार देखा जा सकता है, वो भी बड़ी सहजता के साथ। यह वेब सीरीज आपको वैसे ही एहसास करवाएगी, जैसे तपते हुए दिन के बाद शाम ढले कोई ठंडी हवा का झोंका, आपकी बालकोनी से लांघकर आपके गालों को छू जाए।
एक विशेष टिप्पणी, इस सीज़न को देखते हुए पहले सीज़न से इसकी तुलना न करें। ऐसा करने पर “गज़ब बेज्जती है” जैसी पंच लाइनों की कमी आपको खल सकती है। लेकिन इस सीरिज़ में बहुत कुछ ऐसा है जो आपको सोचने पर मजबूर करता है, फिर चाहे वह नाचने वाली का डायलॉग “सब कहीं न कहीं नाच ही तो रहे हैं” या फिर प्रहलाद जी के लिए कहा गया डायलॉग “जब समाज में निकलेंगे, सर ऊंचा रहेगा। खूब इज्जत मिलेगी। लेकिन घर लौटेंगे तो अकेलेपन के सिवाय कुछ नहीं रहेगा।”
इसके अलावा, इस वेब सीरीज दो गाने डाले गए हैं, जो कहानी के अनुकूल हैं, सिनेमा प्रेमियों पसंद आएंगे, क्योंकि कानफोड़ू नहीं हैं। इस वेब सीरीज को देखने के बाद, अगले सीजन का इंतजार जरूर करेंगे, और साथ ही, यह शिकायत भी दूर हो जाएगी, OTT पर केवल अश्लीलता और हिंसा भरपूर वेब सीरीज ही मिलती हैं।
- दुर्गेश मौर्य
- Star Cast: Jitendra Kumar, Neena Gupta, Raghubir Yadav, Faisal Malik, Chandan Roy, Sunita Rajwar