2010 में आई दक्षिण कोरियाई फिल्म ‘द मैन फ्रॉम नोव्हेअर’ का आधिकारिक रीमेक ‘रॉकी हैंडसम’ है, इसलिए फिल्म की कहानी में अधिक जोड़ तोड़ नहीं किया गया। जैसे कि ट्रेलर से ही समझ आता है कि फिल्म का नायक रूखे मिजाज का है। और अपने पड़ोस में रहने वाली बच्ची को काफी चाहता है, जो अगवा हो जाती है। फिल्म की कहानी इसके इर्द-गिर्द घूमती है।फिल्म में क्रूर अपराधी, मादक पदार्थ के तस्कर और बच्चों के तस्करों सहित कई उतार-चढ़ाव देखने को मिलते है।
यदि फिल्म कहानी की बात करें तो कबीर अहलावत (जॉन अब्राहम), जो गोवा में रहता है, लेकिन लोग उसके बारे में अधिक नहीं जानते हैं। कबीर जीवन में घटित हुए एक हादसे के बाद चुप रहने लगा है। उसका काम लोगों को पैसे उधार देना है। मगर, कबीर को पड़ोस में रहने वाली लड़की नाओमी (बेबी दीया चालवड) से लगाव है, जो सात वर्षीय है। अचानक कुछ गुंडे उसे उठाकर ले जाते हैं। बस इसके बाद कबीर का खून खौलता है। आगे क्या होता है ? जानने के लिए जॉन अब्राहम की एक्शन थ्रिलर ‘रॉकी हैंडसम’ देखें।
यदि फिल्म निर्देशन की बात करें तो निर्देशक निशिकांत कामत ‘रॉकी हैंडसम’ में आउट ऑफ फॉर्म नजर आए हैं। उनका प्रस्तुतिकरण काफी दुविधा से भरा हुआ है। निर्देशक का पूरा ध्यान एक्शन की तरफ झुका हुआ नजर आया, इसलिए भावुक दृश्य को बेहतर नहीं बना पाए और इस तरह फिल्मों में इसकी सबसे अधिक जरूरत होती है।
यदि अभिनय की बात की जाए तो सह निर्माता और मुख्य अभिनेता जॉन अब्राहम ने अब तक जितनी भूमिका की उसमें यह उनका अहम किरदार है। मगर, भावनात्मक दृश्यों में जॉन अब्राहम कमजोर पड़ रहे हैं जबकि एक्शन में तो जॉन अब्राहम का कोई जवाब नहीं है। इस फिल्म में कुछ चाकू से किए एक्शन दृश्य हैं, जिसके लिए जॉन अब्राहम दे विशेष ट्रेनिंग ली थी। हमारी सलाह है कि अक्षय कुमार से कॉमेडी सीखने वाले जॉन अब्राहम को शाह रुख ख़ान की संगत करते हुए कुछ दिन रोने, उदास होने की शिक्षा भी लेनी चाहिए। श्रुति हासन की जरूरत ही नहीं थी, मगर, भारतीय फिल्म नायिका के बिना नहीं बनती, शायद ऐसा निर्देशक को लगा। इसके अलावा निशिकांत कामत ने भी एक किरदार अदा किया है और उनका अभिनय ठीक है। नाओमी के किरदार में दीया चालवड का अभिनय अच्छा है।
फिल्म का संगीत कहानी को आगे बढ़ता है, मगर, मजे वाली बात नहीं है। यदि आप को एक्शन फिल्में पसंद हैं। यदि आप अधिक नुक्ताचीनी नहीं करते हैं तो आपको रॉकी हैंडसम देखनी चाहिए। यकीन मानिए, यह राम गोपाल वर्मा की आग, संजय लीला भंसाली की संवारिया, साजिद ख़ान की हमशकल्स, फराह ख़ान की तीस मार ख़ान, शिरीश कुंदर की जोकर नहीं है।
चेतावनी – यह फिल्म समीक्षक की निजी राय है, तो सभी पर लागू नहीं होती है, क्योंकि सब की अपनी अपनी पसंद होती है।