Tuesday, January 14, 2025
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Movie Review : बागी 2 – इश्क जुनून से बढ़कर कुछ नहीं….

बागी 2 की कहानी सस्पेंस के साथ शुरू होती है और एक दिल छूने वाले अंत के साथ खत्म। इस बार भी राम, सीता और रावण कहानी के केंद्र में हैं। रॉनी, जो आर्मी मैन है, नेहा, जो उसकी कॉलेजमेट है। ब्रेकअप के चार साल बाद नेहा एक दिन रॉनी कॉल करती है और उसको मदद के लिए बुलाती है।

रॉनी अभी भी शादीशुदा नेहा से प्यार करता है, जो एक बच्ची की मां है । नेहा की बच्ची का अपहरण हो चुका है। जब पूरा सिस्टम नेहा का साथ देने से इंकार कर देता है तो बच्ची को खोजने की जिम्मेदारी नेहा रॉनी को सौंप देती है।

इसके बाद कहानी रोमांच और रहस्य की ओर बढ़ती है। रॉनी को नेहा का पति शेखर कुछ ऐसा बताता है, जिसके बाद रॉनी को लगने लगता है कि नेहा मानसिक तौर पर स्वस्थ नहीं। गुस्सैल रॉनी नेहा को उसके बीमार होने के बारे में बताता है।

इधर, अचानक रॉनी को नेहा के स्वस्थ होने का सुराग मिलता है, और उधर नेहा अपनी बहुमंजिला रिहायश से कूद जाती है। इससे आगे की कहानी तो फ़िल्म बागी 2 देखने के बाद ही पता चलेगी।

बागी 2 की पटकथा कसावट भरी है। सस्पेंस भरी कहानी समय समय पर दर्शकों को चौंकती है। इसमें कोई दो राय नहीं है कि रोमांस, रोमांच और एक्शन का तड़का दर्शकों को बांधे रखने का दम रखता है।

दक्षिण भारतीय फिल्मों की बनावट शैली से प्रभावित फिल्म बागी 2 के निर्देशक अहमद खान सही समय पर मध्यांतर करते हैं, जो दर्शकों में दूसरे हिस्से के लिए उत्सुकता पैदा करता है।

आर्मी मैन की भूमिका में टाइगर श्रॉफ का अभिनय बेहतरीन है। टाइगर श्रॉफ के एक्शन में परफेक्शन दिखता है। मनोज बाजपेयी का अभिनय अद्भुत है। रॉनी की प्रेमिका और क्लासमेट नेहा के किरदार में दिशा पाटनी जँचती हैं। रणदीप हुड्डा का किरदार मनोरंजक है। चुटीली संवाद अदायगी और अदाकारी बाकमाल है। प्रतीक बब्बर ने नशेड़ी युवक का किरदार डूबकर निभाया है। दीपक डोबरियाल ने उस्मान लंगड़े के किरदार को दिल से जिया है, कुर्बानी जाया नहीं गयी।

अगर कमजोरियों की बात करूं तो जैकलीन फर्नांडीज का आयटम नंबर डालने की जरूरत नहीं थी। फिल्म के अंत में डाले गए एक्शन सीनों में अहमद खान ने गेम वाला इजी मोड का इस्तेमाल किया, जिसमें हमलावरों को कुचलते हुए डिफेंडर बड़ी आसानी से आगे बढ़ता है। जो दिखने में अच्छा लगता है, लेकिन, रोमांच पैदा करने में बुरी तरह असफल रहता है।

यहां केवल टाइगर श्रॉफ के फुर्तीले और चुस्त भरे शरीर के करतब देखने को मिलते हैं।इन सीनों को देखते हुए ऐसा लगता है कि सैंकड़ों कुत्ते पालने से बेहतर है कि रॉनी सा एक शेर का बच्चा पालो।

इसमें कोई शक नहीं है कि फिल्म बागी 2 के बीच बीच में कुछ लम्हें बोरियत भरने वाले भी आते हैं। मगर, इसके बावजूद भी फ़िल्म अपनी रोचकता को बरकरार रखती है।

फिल्म के अंतिम पल काफी खूबसूरत हैं, जो दिल को छूते हैं। नायक के साथ हमदर्दी होने लगती है, जो भारतीय दर्शकों की सबसे बड़ी कमजोरी है। कुल मिलाकर फ़िल्म बागी 2 मनोरंजन करती है।

कुलवंत हैप्पी

Kulwant Happy
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कुलवंत हैप्‍पी, संपादक और संस्‍थापक फिल्‍मी कैफे | 14 साल से पत्रकारिता की दुनिया में सक्रिय हैं। साल 2004 में दैनिक जागरण से बतौर पत्रकार कैरियर की शुरूआत करने के बाद याहू के पंजाबी समाचार पोर्टल और कई समाचार पत्रों में बतौर उप संपादक, कॉपी संपादक और कंटेंट राइटर के रूप में कार्य किया। अंत 29.01.2016 को मनोरंजक जगत संबंधित ख़बरों को प्रसारित करने के लिए फिल्‍मी कैफे की स्‍थापना की।
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