फिल्म समीक्षा — फिरंगी : पुरानी कहानी, कमजोर पटकथा और सुस्त नायक

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स्वतंत्र भारत में जहां एक ख़बर छपने पर सौ सौ करोड़ के नोटिस समाचार प्रकाशकों के मुंह पर मारे जा रहे हैं। वहां दूसरी ओर राजीव ढींगरा की फिल्म फिरंगी बताती है कि ब्रिटिश साम्राज्य एक अधिकारी की धक्केशाही वाली ख़बर प्रकाशित होते ही उसको वापस लंदन आने का आदेश सुनाता है।

फिरंगी देखते देखते आप को फिरंगियों की व्यवस्था से प्यार और स्वतंत्र भारत की कानून व्यवस्था से नफरत हो सकती है। गांव में रहने वाला स्वतंत्रता सेनानी लाला जी भी सोचता है कि ब्रिटिश साम्राज्य में कानून से उुपर कुछ नहीं है, उसको कानून में विश्वास है और कानून की बात आते ही अंग्रेज अधिकारी की भी पेंट ढीली हो जाती है।

फिरंगी की कहानी 1920 के गुलाम भारत के बारे में है। कहानी के केंद्र में अंग्रेज अधिकारी डैनियल मार्क, राजा इंद्रवीर सिंह और सीधा सादा नौजवान मंगा है।

साफ दिल के मंगे को पास के गांव की लड़की सरगी से प्यार हो जाता है। इस बीच मंगे को डैनियल मार्क के यहां नौकरी भी मिल जाती है। मंगे और सरगी के माता पिता इस रिश्ते के लिए राजी हो जाते हैं।

मगर, सरगी का गांधीवादी दादा, जो अंग्रेजों की नौकरी के सख्त खिलाफ है, इस रिश्ते के लिए न कह देता है। उधर, डैनियल मार्क और राजा इंद्रवीर सिंह अपने भावी प्रोजेक्ट के लिए सरगी का गांव खाली करवाना चाहते हैं।

गांधीवादी दादा की नरफत और राजा व अंग्रेज की लालसा के बीच अपनी नौकरी बचाते हुए मंगा अपनी पाक मोहब्बत को किस तरह खूबसूरत मुकाम तक लेकर जाता है? यह देखने के लिए फिल्म फिरंगी देखनी होगी।

फिल्म फिरंगी का स्क्रीन प्ले काफी ढीला ढाला है। संवादों में कड़कपन नहीं है। हास्य संवादों में भी नयापन दिखाई नहीं पड़ता है। प्रेम कहानी और राष्ट्रवाद की खिचड़ी पकाने के चक्कर में राजीव ढींगरा ने काफी सारे किरदार रच दिए और अधिक किरदार होने के कारण दर्शक किसी भी किरदार के साथ भावनात्मक रूप से जुड़ ही नहीं पाते हैं।

कपिल शर्मा का किरदार पटकथा की तरह काफी सुस्त दिखाया गया है। हालांकि, कुछ कुछ सीनों में कपिल शर्मा बेहतरीन लगते हैं। मंगे की दादी के किरदार में जितेंद्र कौर ने बेहतरीन काम किया है। गांव की सीधी और शर्मिली लड़की सरगी के किरदार को इशिता दत्ता ने ईमानदारी से अदा किया है। विदेश में रहकर पढ़ाई करने वाली राजा इंद्रवीर सिंह की बेटी श्यामली के किरदार में मोनिका गिल्ल प्रभावित करती हैं।

इसके अलावा राजा इंद्रवीर सिंह के किरदार में कुमुद मिश्रा ठीक ठाक लगे। अंग्रेज अधिकारी के किरदार में एडवर्ड सोनेनब्लिक और मंगा के दोस्त के किरदार में इनामुल हक ने भी बढ़िया अभिनय किया है।

फिल्म फिरंगी के गीत संगीत पक्ष के साथ भी इंसाफ नहीं हुआ। जब आप हिंदी फिल्म बना रहे हैं, तब आप थोक के हिसाब से पंजाबी गाने नहीं डाल सकते। मगर, यहां पर ऐसा किया गया है।

हालांकि, फिल्म की सिनेमेटोग्राफी काफी बेहतरीन है। पुराने गांवों का ढांचा, शादी का माहौल और महलों की शानोशौकत को खूबसूरत तरीके से दिखाया गया है।

फिल्म फिरंगी देखते हुए महसूस होता है कि इस फिल्म को पंजाबी में बनाने के लिए राजीव ढींगरा ने कपिल शर्मा को अप्रोच की होगी। लेकिन, कपिल शर्मा बॉलीवुड से पॉलीवुड जाने के लिए तैयार नहीं हुए होंगे और उसी पटकथा पर फिरंगी को हिंदी में बनाने की सोच पर सहमति बनी होगी।

य​दि आप कपिल शर्मा के जबरदस्त प्रशंसक हैं और सहज पके सो मीठा होय कथन पर विश्वास करते हैं तो आप बेहिचक फिरंगी देखने जा सकते हैं। हां, फिरंगी उन दर्शकों के लिए बिलकुल नहीं है, जो फिल्म में कसावट और कुछ नयापन देखना पसंद करते हैं।

समीक्षक/कुलवंत हैप्पी