द लंच बाॅक्स जैसी सुपरहिट फिल्म दे चुके फिल्मकार रितेश बत्रा की फोटोग्राफ रिलीज हो चुकी है, जो हिंदू मुस्लिम युगल पर आधारित है। रफी नामक युवक गेटवे आॅफ इंडिया पर सैलानियों के फोटोग्राफ उतारता है और लड़की मिलोनी शाह, जो सीए एंटर की तैयारी कर रही है। दोनों के बीच मुलाकातों का सिलसिला एक फोटोग्राफ से शुरू होता है।
मिलोनी को रफी का उतारा हुआ फोटोग्राफर और रफी को मिलोनी पसंद आ जाती है। एक रात बैठे बैठे रफी अपनी दादी को पत्र लिखता है कि उसको एक लड़की पसंद आ गई है, जिसका नाम नूरी है। दादी पत्र पढ़ते ही मुम्बई रवाना होती है और नूरी से मिलने की इच्छा जाहिर करती है। रफी मिलोनी से मिलता है, उसको सारी बात बताता है। मिलोनी रफी की दादी से मिलने के लिए तैयार हो जाती है। यह मुलाकातों का सिलसिला निरंतर चलता रहता है।
अंत में कहानी किसे नतीजे पर पहुंचे बिना खत्म हो जाती है। हालांकि, कहानी के अंत में कहानी का नायक रफी, जो कहता है, उसमें फिल्म का अंत छुपा हुआ है। इस कहानी में बहुत सारी अंतहीन कहानियां हैं।
रितेश बत्रा का निर्देशन बेहतरीन है। लेकिन, फिल्म की पटकथा कहानी को किसी ठोस नतीजे पर लेकर नहीं पहुंचती। पटकथा पर काम करने की जरूरत थी। फिल्म के कुछ सीन काफी बेहतरीन हैं। दरअसल, फिल्म का फिल्मांकन फिल्म को बेहतरीन बनाता है। फिल्म में मुम्बई की खूबसूरती को काफी अच्छे तरीके से दिखाया गया है। इस फिल्म में बॉडी लैंग्वेज पर काफी ध्यान केंद्रित किया गया है। द लंच बाॅक्स की तरह इस फिल्म में भी रितेश बत्रा ने पुराने गीतों का इस्तेमाल किया है, जो बैकग्राउंड में बजते हैं।
नवाजुद्दीन सिद्दीकी ने कैमरामैन रफी का किरदार बहुत ईमानदारी से निभाया है। सान्या मल्होत्रा ने भी मिलोनी के किरदार में जान डालती है। फिल्म के दोनों किरदार वास्तविकता के बहुत करीब हैं।
कुल मिलाकर कहें तो यह फिल्म उन दर्शकों के लिए है, जो सिनेमे की बारीकियां जानते हैं। जो सिनेमा को सीख रहे हैं या इसकी बारीकियों को समझना चाहते हैं। सिने जगत में कदम रखने के लिए आतुर नवयुवाओं के लिए भी यह फिल्म बेहतरीन साबित हो सकती है। लेकिन, उन दर्शकों को निराश कर देगी, जो हिंदी सिनेमा की मसाला फिल्मों के दीवाने हैं या फिल्म को मनोरंजन के लिए देखते हैं।