पिछले शुक्रवार नवोदित फिल्मकार अनिरुद्ध रॉय चौधरी ने फिल्म ‘पिंक’ के जरिये महिलाओं के चरित्र को उनके पहनावे से आंकने की बात को सिल्वर स्क्रीन पर बड़े उम्दा तरीके से रखा। वहीं, इस शुक्रवार फिल्मकार लीना यादव ने फिल्म ‘पार्चेड’ के रूप में ग्रामीण महिलाओं की दयनीय व असहनीय स्थिति का कच्चा चिट्ठा बड़े पर्दे पर खोलकर रख दिया है।
शब्द और तीन पत्ती जैसी फिल्मों का निर्देशन कर चुकीं लीना यादव पार्चेड के तीन किरदारों के जरिये सामाजिक बुराईयों को जगजाहिर करती हैं। फिल्म पार्चेड में दिखाया गया है कि किस तरह आज भी ग्रामीण क्षेत्रों में महिलाएं पुरुषों के लिए केवल कामवासना, बच्चे पैदा करने और अपना गुस्सा उतारने निकालने का जरिया हैं।
कहानी की बात करें तो रानी, लाजो और बिजली के इर्दगिर्द बुनी गई है। एक विधवा है, एक बांझपन का संताप भोग रही है और एक वेश्यावृत्ति से अपना जीवन गुजारा करती है। तीनों एक दूसरे से जुड़ी हुईं हैं। एक दूसरे के पास रहकर किसी न किसी अनजान बात से अवगत होती हैं। ग्रामीण पृष्ठभूमि पर बनीं ‘पार्चेड’ बाल विवाह, विधवापन, बांझपन और वेश्यावृत्ति जैसी कई सामाजिक बुराईयों को उम्दा तरीके से पर्दे पर रखती है।
फिल्म में दिखाया गया है कि किस तरह एक किशोर लड़का यौन संबंधों पर बनीं फिल्में देखकर औरत के प्रति अपना एक मनगढ़त नजरिया बना लेता है। बांझपन के लिए केवल औरतें दोषी नहीं हैं। कुछ पुरुषों में भी संतान पैदा करने की शक्ति नहीं होती को बड़े खूबसूरत तरीके से पेश किया गया है। हालांकि, फिल्म में महिला प्रति हिंसा को कुछ ज्यादा ही हिंसक कर दिया गया है। यकीनन, कुछ सीनों को पर्दे में रखा या हटाया जा सकता था क्योंकि बात समझाने के लिए हर बात को खुलकर रखना भी जरूरी नहीं होता।
फिल्म लीना यादव का निर्देशन और फिल्म का प्रस्तुतिकरण काफी शानदार है। अभिनेत्री तनिष्ठा चटर्जी, राधिका आप्टे और सुरवीन चावला का अभिनय खूब सराहनीय है। इसका मुख्य कारण महिला निर्देशक लीना यादव भी हैं क्योंकि महिला कलाकारों को महिला निर्देशक के साथ काम करने में अधिक अनुकूलता रहती है, जब इस तरह की फिल्म करने की बात हो।
फिल्म पार्चेड और पिंक इनको बॉलीवुड की मसाला या व्यावसायिक फिल्मों की श्रेणी में रखना उचित नहीं है। यह तो एक अलग श्रेणी की फिल्में हैं, जो समय समय पर बनती रहनी चाहिए। फिल्म ‘पार्चेड’ तो महिलाओं की उस असहनीय और दयनीय स्थिति से अवगत करवाती है, जो पुरुषों की मानसिकता के कारण पैदा होती है। ऐसी फिल्में केवल चर्चाएं शुरू करवाने और बदलाव लाने में अहम भूमिकाएं अदा करती हैं।
हमारी तरफ से फिल्म पार्चेड को साढ़े तीन स्टार दिए जाते हैं। हालांकि, यह हमारा अपना नजरिया है, जो सभी पर लागू नहीं होता क्योंकि हर किसी का अपना अपना नजरिया होता है।
-नील सर्वोपरि