सुशांतसिंह राजपूत की खुदकुशी और पर्दे के पीछे की दुनिया

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बीते रविवार का दिन मायानगरी के लिए सबसे भयानक दिनों में से एक था। अभिनेता मनमीत गरेवाल, अभिनेत्री प्रेक्षा मेहता औ सेलेब्‍स मैनेजर दिशा सालियन के बाद 34 वर्षीय अभिनेता सुशांतसिंह राजपूत द्वारा खुदकुशी करने का मामला सामने आते ही सोशल और इलेक्‍ट्रोनिक मीडिया ने फिल्‍म जगत पर कीचड़ उछालना शुरू कर दिया। इस चलन में सुशांत की मौत के लिए सीधे सीधे तौर पर बड़े फिल्‍म प्रोडक्‍शन हाउसों और कुछ निर्माताओं को दोषी तक ठहरा दिया गया जबकि सुशांतसिंह राजपूत ने अपनी खुदकुशी के लिए किसी को भी जिम्‍मेदार नहीं ठहराया और पुलिस को भी अभी तक जांच में ऐसा कोई दस्‍तावेज नहीं मिला, जो कारण को स्‍पष्‍ट करता हो।

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ऐसे में हमने सिक्‍के का दूसरा पहलू जानने और समझने के लिए फिल्‍म फाइनेंसर, डिस्‍ट्रीब्‍यूटर और बिजनेस एनालिटिक योगेश स्याल से बातचीत की और उस बातचीत के आधार पर एक निष्‍पक्ष रिपोर्ट तैयार करने की कोशिश की।

जज मत बनिए
इस मामले में बात रखने से पहले कहना चाहता हूं कि सुशांतसिंह राजपूत की खुदकुशी के मामले में पुलिस जांच चल रही है और ऐसे में हम को कानून पर विश्‍वास रखना चाहिए, खुद को जज बनने से रोकना चाहिए। मैं देख रहा हूं कि आस पास में अनाप शनाप बातें चल रही हैं। कुछ ऐसे लोग भी लिख रहे हैं, जिनको फिल्‍म जगत के बारे में जरा सी समझ तक नहीं है। हर किसी की अपनी अपनी राय हो सकती है, हर किसी का किसी न किसी अभिनेता से पर्सनल क्रश हो सकता है। लेकिन, जब बात बड़े दायरे में हो रही होती है, उस समय हम को बात करते हुए हर पहलू को देखने की जरूरत रहती है। मैं देख रहा हूं, एक तरफा बात हो रही है, केवल और केवल अभिनेता को देखा जा रहा है। सुशांत की खुदकुशी के लिए निजी कारण भी जवाबदेह हो सकते हैं और करियर से संबंधित बातें भी। फिलहाल, जांच चल रही है। पर, जो मीडिया और सोशल मीडिया पर चल रहा है, फिल्‍म जगत को लेकर एक अवधारणा खड़ी की जा रही है, उस पर स्‍पष्‍टता से बात रखना चाहूंगा। जनता केवल अभिनेता को देखती है और समझती है। जबकि फिल्‍म जगत एक व्‍यवस्‍था है, जिसमें अभिनेता के अलावा भी अन्‍य लोग शामिल होते हैं, जो पर्दे के पीछे रहते हैं।

बदलते तौर तरीके
फिल्‍म जगत पहले जैसा बिलकुल नहीं रहा। इसमें बहुत सारे बदलाव आ चुके हैं। अभिनेताओं ने मैनेजर हायर कर रखे हैं, जो निर्माता निर्देशक के साथ डील करते हैं। दूसरी ओर कुछ प्रोडक्‍शन हाउस कास्टिंग कंपनियों के मार्फत ही अभिनेताओं से रूबरू होते हैं। ऐसे में नए चेहरों को काम मिलने की संभावना बढ़ भी जाती है और एकदम खत्‍म भी, इसमें कलाकारों का शोषण भी शामिल है। उधर, सब कुछ एक्‍टर मैनेजर पर निर्भर करता है और इधर, कास्टिंग कंपनियों पर। पहले निर्माता, अभिनेता और निर्देशक एक साथ बैठकर फिल्‍म पर चर्चा करते थे। इस समय अभिनेता सीधे तौर पर निर्माता के टच में नहीं होता, बीच में मैनेजर आ चुके हैं, जो बहुत ही कम उम्र के होते हैं, जिनको फिल्‍म की समझ कितनी हो सकती है, आप खुद ही समझ सकते हैं। निर्माता, निर्देशक और अभिनेता में एक बड़ा सा गैप आ चुका है, जो नहीं आना चाहिए था, जो सबसे ख़तरनाक है।

अपनापन खत्‍म
निर्माता निर्देशक और अभिनेता के बीच कास्टिंग और मैनेजर आने के कारण दूरी बढ़ने से संबंधों में अपनापन खो चुका है। फिल्‍म जगत के इन तीन मजबूत कड़‍ियों में केवल पेशेवर संबंध रह गए है। प्रोजेक्‍ट खत्‍म होते ही सब अपने अपने राहों पर निकल लेते हैं। किसी को किसी से कोई लेन देन नहीं रहा। पहले ऐसा बिलकुल नहीं था, निर्माता, निर्देशक और अभिनेता एक दूसरे से जुड़े रहते थे यदि कोई एक मुश्किल में आता, तो दूसरा आगे हाथ करता था। मान लीजिए किसी निर्माता की लगातार कई फिल्‍में फ्लॉप हो गई, तो वो अपने निटकवर्ती सफल अभिनेता के पास जाकर उसको अपनी अगली फिल्‍म में काम करने का आग्रह कर सकता था। अभिनेता भी अपने मुश्किल वक्‍त में ऐसा ही करते थे। अब वो बात नहीं रही।

अभिनेताओं का रवैया
एक दो फिल्‍में मिलने के बाद अभिनेताओं का रवैया बदल जाता है। फिल्‍म की कहानियां मैनेजरों से होते हुए अभिनेता तक पहुंचती है। मैनेजर या प्रबंधन कंपनियां बीच में डील करने लगी हैं। ऐसे में कमीशनखोरी बढ़ चुकी है। हर अभिनेता बड़े निर्माताओं या कारपोरेट प्रोडक्‍शन हाउसों के साथ काम करना चाहता है। उसके सपने बड़े होने लगे हैं। सुशांत की बात ही करें, तो सुशांत एक फिल्‍म को साइन करने के लिए 7 करोड़ रुपये तक लेते थे और इसके बाद भी उपलब्‍धता तो अभिनेता के मूड पर निर्भर होती है। जैसे हाल ही में हिंदुस्‍तान टाइम्‍स से बात करते हुए फिल्‍म निर्देशक रूमी जाफरी ने बताया था कि उसकी खुद की फिल्‍म की शूटिंग मई में शुरू होने वाली थी, जिसमें सुशांतसिंह राजपूत थे और उसके दो निर्माता सुशांतसिंह राजपूत से बात करना चाहते थे। लेकिन, सुशांत ने यह कहते हुए मना कर दिया कि जब मुझको काम करना ही नहीं, तो बात किस लिए करूं। मान लिया कि सुशांत को इक्‍का दुक्‍का फिल्‍मों से बाहर किया गया हो, लेकिन, खुद भी तो अभिनेता दर्जनों फिल्‍मों को ठोकर मार देते हैं। सुशांत ही नहीं, अन्‍य अभिनेता भी ऐसा ही करते हैं।

निर्माता – रस्‍सी पर चलने वाला
फिल्‍म लाइन में यदि सबसे ज्‍यादा जोख़म भरा कोई काम है, वो है, किसी फिल्‍म को बनाने के लिए पैसा लगाना। मैं निर्माता को रस्‍सी पर चलने वाला ही कहूं, जिसका थोड़ा सा भी संतुलन बिगड़ा, तो आंख झपकते ही जमीन पर आ गिरेगा। फिल्‍म चले कि फ्लॉप हो, अभिनेता अपना पैसा लेकर निकल जाता है। अभिनेता एक साल में तीन से चार फिल्‍में कर सकता है, पर, हर निर्माता ऐसा करने में सक्षम नहीं है। जब अक्षय कुमार का बुरा वक्‍त चल रहा था, तब केशु रामसे की आधा दर्जन फिल्‍मों ने अक्षय कुमार को फिल्‍म लाइन में बनाए रखा। लेकिन, 2006 में रिलीज हुई फैमिली के बाद अक्षय कुमार ने केशु रामसे के साथ एक भी फिल्‍म नहीं की, उस समय केशु रामसे को अक्षय कुमार की सख्‍त जरूरत थी। अक्षय कुमार पर भरोसा करके केशु रामसे ने राजकुमार संतोषी को साइनिंग अमाउंट भी दे दी थी। लेकिन, अक्षय कुमार फिल्‍म करने के लिए केशु रामसे के पास नहीं आए। फिरोज नाडियाडवाला के साथ भी कुछ ऐसी ही कहानी है, जिसने अक्षय कुमार के साथ हेराफेरी समेत पांच बड़ी हिट फिल्‍में दी हैं। फिल्‍म निर्देशक राजकुमार संतोषी ने लगभग 50 करोड़ की लागत वाली पॉवर बनाना शुरू की, जिसमें अजय देवगन, अनिल कपूर, अमिताभ बच्‍चन जैसे बड़े सितारे थे, लेकिन, फिल्‍म अधर में लटका दी गई। नतीजन, फिल्‍म निर्माता को 20 करोड़ रुपए तक का नुकसान हुआ, क्‍योंकि 15 दिन का शूट हो चुका था। कुमार मंगत ने कार्तिक आर्यन की पहली फिल्‍म में पैसा लगाया था। आज कार्तिक आर्यन का समय अच्‍छा है। ऐसे में कार्तिक आर्यन बड़़े बैनर के साथ काम करने में व्‍यस्‍त है और इधर, कुमार मंगत को एक सफल फिल्‍म की सख्‍त जरूरत है। अभिनेता के पास समय नहीं। कितनी हैरानी की बात है कि अभिनेता की मौत के लिए फिल्‍ममेकर को दोषी ठहराया जा सकता है, लेकिन फिल्‍म निर्माता की मौत के लिए किसी भी अभिनेता को जिम्‍मेदार नहीं ठहराया जाता।

किस्‍मत : तुरुप का पत्‍ता
प्रतिभा के साथ भाग्‍यवान होना भी बहुत जरूरी है। अभिनेता अक्षय कुमार तो खुद कहता है कि 80 प्रतिशत तो उसकी किस्‍मत है। बिलकुल, इस दुनिया में भी किस्‍मत ही तुरुप का पत्‍ता है। जब सुभाष घई का समय अच्‍छा चल रहा था, तो उनकी हर फिल्‍म बॉक्‍स ऑफिस कमाल कर रही थी। लेकिन, जैसे ही समय ने मुंह फेरा, तो सलमान खान, अनिल कपूर और कटरीना कैफ को लेकर बनाई ‘युवराज’ भी बॉक्‍स ऑफिस पर फुस्‍स हो गई। ‘आशिक बनाया आपने’ को ही ले लीजिए। इस फिल्‍म का निर्देशक बिलकुल नया था, इस फिल्‍म का संगीत हिमेश रेश्‍मि‍या ने दिया और उसी समय हिमेश रेश्‍मि‍या ने सुभाष घई के बैनर की फिल्‍म गुड बॉय बैड बॉय को भी म्‍यूजिक दिया था। पर, चला तो नए निर्देशक की फिल्‍म का संगीत। इसलिए जब समय साथ न हो, तो समझ भी धरी की धरी रह जाती है। यशराज फिल्‍म्‍स की ठग्‍स ऑफ हिंदुस्‍तान को ही देख लीजिए। इस फिल्‍म में अमिताभ बच्‍चन, आम‍िर खान और खुद आदित्‍य चोपड़ा की समझ शामिल थी। लेकिन, बॉक्‍स ऑफिस पर फिल्‍म ने पानी तक नहीं मांगा।

बनाना और बिगाड़ना
फिल्‍म लाइन में कोई किसी का करियर बना या बिगाड़ नहीं सकता। यदि बनाना और बिगाड़ना किसी बैनर या निर्माता के हाथ में होता तो उदय चोपड़ा फिल्‍म लाइन से लापता न होता, क्‍योंकि यशराज फिल्‍म्‍स कोई छोटा मोटा बैनर नहीं है। सुशांत को टेलीविजन की दुनिया में लाने वाली एकता कपूर अपने भाई तुषार कपूर को सुपरस्‍टार बना देती। जावेद अख्‍तर अपने बेटे फरहान अख्‍तर की फिल्‍मों के लिए हिट गीत लिख देते। सलीम अपनी कहानियों से अरबाज खान या सोहेल खान को भी अगला अमिताभ बच्‍चन बना देते। धर्मेंद्र सनी देओल की तरह बॉबी देओल को भी लोकप्रिय अभिनेता बना देते। कहा जा रहा है कि सुशांत को बर्बाद करने के लिए निर्माताओं ने बैन कर दिया था, इसलिए अभिनेता तनाव में था। यदि ऐसा होता तो प्रियंका चोपड़ा तो कब की खत्‍म हो जाती क्‍योंकि प्रियंका चोपड़ा के साथ फिल्‍म जगत के तीन बड़े अभिनेताओं ने काम करने से इंकार कर दिया था। इसके बावजूद भी प्रियंका चोपड़ा हॉलीवुड तक पहुंच गई। यहां कोई किसी का रास्‍ता नहीं रोक सकता यदि आप आगे बढ़ने की ठान लेते हैं।

प्रतिभा को बैनर नहीं, बैनर को प्रतिभा चाहिए
हर कोई अपनी नजर में प्रतिभावान हो सकता है। लेकिन, फिल्‍म निर्माता निवेशक होता है, और निवेश करने से पहले संभावनाएं आंकी जाती हैं। कुछ किस्‍मत वाले होते हैं, जिनको इस लाइन में आते ही बड़े फिल्‍म निर्माता मिल जाते हैं, वरना, हर किसी को शुरूआत तो छोटे प्रोजेक्‍टों से ही करनी पड़ती है और जब उनकी प्रतिभा बोलने लगती है, तो बड़े बैनर उनके साथ काम करने के लिए सोचने लगते हैं। जहां बैनर को प्रतिभा की तलाश होती है, वहीं, प्रतिभा को भी एक बड़े बैनर की तलाश हमेशा रहती है। साथ में याद रखिए कि बड़ा बैनर सफलता की गारंटी नहीं हो सकता यदि ऐसा होता तो कुछ साल पहले सफल अभिनेता आमिर खान की ओर से उतारे गए इमरान खान फिल्‍म जगत से लापता न होते और छोटे मोटे किरदारों से शुरूआत करने वाले इरफान एक स्‍थापित स्टार तक का सफर तय करके इस दुनिया को अलविदा न कहते।

सुशांत का करियर
मुझे नहीं लगता है कि सुशांतसिंह राजपूत को करियर से संबंधित कोई चिंता थी क्‍योंकि रूमी जाफरी के मुताबिक उनकी अगली फिल्‍म की शूटिंग मई में शुरू होने वाली थी, जिसमें सुशांत रिया चक्रवर्ती के साथ लीड भूमिका में थे। साथ ही सुशांत की दिल बेचारा रिलीज होनी बाकी है, जो बॉक्‍स ऑफिस पर कैसी रहेगी अभी कहना मुश्किल है। पर, क्रिटिक की ओर से सुशांत के काम की सराहना होनी पक्‍की थी, क्‍योंकि फिल्‍म का निर्देशक मुकेश छाबरा कर रहे हैं, जो कास्टिंग डायरेक्‍टर हैं। ऐसे में सुशांत को नई फिल्‍मों के ऑफर मिलने की संभावनाओं को नकारना गलत होगा। एक समय पर अक्षय कुमार ने लगातार दर्जन भर से ज्‍यादा फ्लॉप फिल्‍में दी। पर, आज देखिए, उसी अक्षय कुमार को बॉक्‍स ऑफिस पर सबसे बड़ा खिलाड़ी कहा जाता है। फिल्‍म लाइन में कई झटकों के बाद भी आपको टिके रहना पड़ता है। लेकिन, आपको जानकर हैरानी होगी कि सुशांत को संघर्ष करना ही नहीं पड़ा। टेलीविजन की दुनिया में एकता कपूर ने उतारा और बड़े पर्दे पर यशराज फिल्‍म्‍स और अभिषेक कपूर लेकर आ गए। दूसरी ओर देखिए, नवाजुद्दीन सिद्दीकी दस साल तक एक कमरे में रहा है, जहां पर आठ आठ लोग रहते थे। उसने आजीविका के लिए रात को चौंकीदारी तक की है। जबकि इस समय तो सुशांत के पास करोड़ों रुपये की संपत्ति है, यदि उसकी अगली तीन चार फिल्‍में फ्लॉप भी हो जाती, तो भी उसको अधिक परेशानी का सामना नहीं करना पड़ता, क्‍योंकि फिल्‍म जगत में निर्माता फ्लॉप से फ्लॉप अभिनेता को साइन करने के लिए लाइनें लगाकर खड़े हैं और अभिनेता के पास समय नहीं।

जनता की अदालत
फिल्‍म बनाने में भले ही निर्माता, निर्देशक और अभिनेता अहम होते हों। लेकिन, फिल्‍म का भविष्‍य जनता के हाथों में होता है। जनता की अदालत का फैसला अंतिम फैसला होता है। मैं हैरान हूं कि आज वही जनता सुशांतसिंह राजपूत की मौत के लिए फिल्‍म निर्माताओं को दोषी ठहरा रही है, जिसने सुशांत की अंतिम पांच में से केवल दो फिल्‍मों को ही बॉक्‍स ऑफिस पर भरपूर प्‍यार दिया। मुझे याद है कि मैंने रांझणा फिल्‍म निर्देशक आनंद एल राय को देखकर खरीदी थी जबकि उसमें दक्षिण अभिनेता धनुष और फ्लॉप पर फ्लॉप देने वाली सोनम कपूर लीड भूमिका में थी। यह फिल्‍म बॉक्‍स ऑफिस पर चल निकली थी। लेकिन, इसके बाद जब आनंद एल राय का नाम बड़े निर्देशकों में शुमार हुआ, तो उसने बड़ी स्‍टार कास्‍ट शाह रुख खान, कटरीना कैफ और अनुष्‍का शर्मा के साथ ‘जीरो’ बनाई और पिक्‍चर बॉक्‍स ऑफिस आते ही जीरो हो गई। जरा सोचिए, इतनी बड़ी स्‍टार कास्‍ट, इतना बड़ा बैनर और आनंद एल राय खुद सफल निर्देशक, लेकिन बॉक्‍स ऑफिस पर किसी का जोर नहीं चला। असल बात तो यह है कि सब कुछ जनता की पसंद पर निर्भर करता है।

चढ़ते सूरज को सलाम
फिल्‍म जगत का दस्‍तूर है – चढ़ते सूरज को सलाम करना। आज हर कोई आयुष्‍मान खुराना को साइन करना चाहता है क्‍योंकि बॉक्‍स ऑफिस पर उसका सिक्‍का बोलने लगा है। अक्षय कुमार के साथ भी कुछ ऐसा ही है। एक समय था, जब करण जौहर अक्षय कुमार के साथ फिल्‍म नहीं करता था और आज देखिए, शाह रुख खान की जगह करण जौहर अक्षय कुमार की फिल्‍म में निवेश कर रहे हैं। राजकुमार संतोषी, जिसने अंदाजा अपना अपना, बरसात, घातक, द लीजेंड ऑफ भगत सिंह और खाकी जैसी फिल्‍में दी, के साथ आज कोई बड़ा अभिनेता काम करने को तैयार नहीं है। इसलिए कौन सही है या कौन गलत है फिल्‍म जगत के बाहर रहकर मत बताइए, इस दुनिया में उतरो और जानो।