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Movie Review : सूरमा – रिलेशन, इमोशन और नेशन

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Movie Review : सूरमा – रिलेशन, इमोशन और नेशन

दिलजीत दोसांझ पंजाबी संगीत और फिल्म जगत का चमकता सितारा, भले ही हिंदी फिल्म जगत के लिए नया चेहरा और नाम है। लेकिन, दिलजीत दोसांझ ने अपने गानों और उड़ता पंजाब, फिलौरी जैसी फिल्मों की बदौलत गैर पंजाबी दिलों में भी जगह बना रखी है। दिलजीत दोसांझ की चैथी हिंदी फिल्म सूरमा रिलीज हो चुकी है, जो हाॅकी कप्तान संदीप सिंह के जीवन पर आधारित है।

फिल्म का निर्देशन शाद अली ने किया है, जो इससे पहले किल दिल, ओके जानू, झूम बराबर झूम और साथिया जैसी फिल्मों का निर्देशन कर चुके हैं। इस बार शाद अली ने हिंदी फिल्म स्टार को कास्ट करने की बजाय मुख्य भूमिका में दिलजीत दोसांझ को चुना और फिल्म के लिए हाॅकी खिलाड़ी संदीप सिंह की जीवनी। यह कदम शाद अली के लिए आत्मघाती भी हो सकता था, लेकिन, ऐसा नहीं हुआ।

शाद अली ने निर्देशन के साथ साथ पटकथा लिखने का काम भी संभाला। दोनों ही मोर्चों पर शाद अली ने जबरदस्त काम किया है। नतीजन, एक दिलचस्प और प्रेरणादायक फिल्म सूरमा निकलकर आयी। सूरमा देखने के बाद यह कहना अतिकथनी नहीं होगी कि संदीप सिंह के जीवन को बड़े पर्दे पर बहुत ही दिलचस्प स्क्रीन प्ले के साथ उतारा गया है।

यदि अभिनय की बात करें तो दिलजीत दोसांझ ने हाॅकी खिलाड़ी संदीप सिंह के किरदार को बड़े पर्दे पर दिल से निभाया है। दिलजीत दोसांझ हर फ्रेम में जबरदस्त लगे हैं। वहीं, अंगद बेदी ने भी विक्रम के किरदार को बड़ी संजीदगी के साथ निभाया है। शोले के अमिताभ और धर्मेंद्र की तरह दिलजीत और अंगद की जोड़ी दिल जीतती है। विजय राज ने दबंग कोच और सतीश कौशिक ने थके हारे पिता व व्यक्ति के किरदार को जीवंत किया है। साथ ही, तापसी पन्नु और अन्य कलाकारों ने अपने अपने किरदार में बेहतरीन और सराहनीय काम किया है।

कहानी की बात करें तो संदीप सिंह विक्रम सिंह से छोटा है। विक्रम सिंह बचपन से जवानी तक हाॅकी सीखता है और संदीप सिंह जवानी में एक लड़की प्रीत के इश्क में पड़ कर हाॅकी की तरफ बढ़ता है। संदीप सिंह का हुनर, उसकी इच्छा और अच्छी किस्मत उसको खेल अकादमी तक खींच लाती है। संदीप सिंह हाॅकी की दुनिया में चमकता का सितारा बनकर उभर रहा होता है, तभी उसको किसी कारणवश गोली लगती है और नतीजन, संदीप सिंह का कमर से निचला हिस्सा नकारा हो जाता है। लकवे के कारण संदीप सिंह व्हील चेयर पर आ जाता है और प्रीत भी छोड़ कर चली जाती है, जिसके लिए संदीप सिंह हाॅकी की दुनिया में आता है। आगे की कहानी जानने के लिए सूरमा देखनी होगी।

सूरमा एक प्रेरणादायक और परिवारिक फिल्म है। इस फिल्म को पूरे परिवार के साथ बैठकर देखा जा सकता है क्योंकि फिल्म का स्क्रीन प्ले और डायलॉग शुद्ध परिवारिक हैं। यदि आपको हाॅकी के खेल में रुचि नहीं है तो एक बार सूरमा देखें, क्योंकि यहां हाॅकी क्रिकेट से भी ज्यादा रोमांचक लगती है। फिल्म के बारे में अच्छी बात यह है कि शाद अली ने खेल के इर्दगिर्द फिल्म बनाने की जगह फिल्म को परिवार और समाज के इर्दगिर्द बुना है।

– कुलवंत हैप्पी