स्टार अभिनेता आमिर खान के प्रोडक्शन हाउस की फिल्म दंगल से धमाकेदार अभिनय पारी शुरू करने वाली 18 वर्षीय जायरा वसीम ने रविवार को एक सोशल मीडिया पर लिखे खुले पत्र से तहलका मचा दिया। जायरा वसीम की खुशकिस्मती है कि उसकी हर बात को मीडिया और सोशल मीडिया दोनों ही महत्व देते हैं। चाहे श्रीनगर में जायरा वसीम के विरोध का मामला हो, चाहे एयरलाइन में जायरा वसीम के साथ छेड़छाड़ का मामला हो।
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यकीनन, अभिनय को अलविदा कहने का मामला जायरा वसीम का पर्सनल मैटर है। लेकिन, जायरा वसीम ने अलविदा पत्र में धर्म को भी जोड़ लिया। 18 साला अदाकारा जायरा वसीम अपने खुले पत्र में लिखती हैं कि मैं अपने ईमान से भटक गई थी। अभिनय की दुनिया में काम करना मेरे और मेरे धर्म के बीच के संबंध को गहरे संकट में डाल रहा है।
यह बात थोड़ी सी खटक रही है क्योंकि पांच साल बाद अभिनय की दुनिया को अलविदा कहने वाली जायरा वसीम उन सफल मुस्लिम अभिनेत्रियों और अभिनेताओं को सवालों के कटघरे में खड़ा करके जा रही हैं, जिन्होंने अभिनय की दुनिया में बेशुमार प्यार और इज्जत कमाई है। और उनकी मुश्किलों को बढ़ाकर जा रही हैं, जो लड़कियां अभिनय की दुनिया में आने के सपने बुन रही हैं और मुस्लिम परिवारों से संबंध रखती हैं क्योंकि जायरा वसीम की कही हुई बात उनके रास्ते का रोड़ा बन जाएगी।
भारतीय सिनेमा के इतिहास को जब भी पलट कर देखा जाएगा तो भारतीय अभिनेत्रियों में से जो भी नाम सुनहरे अक्षरों में लिखे जा चुके हैं, वो अधिकतर मुस्लिम परिवारों से संबंधित हैं। जी हां, संजय दत्त की मां नर्गिस का असली नाम फातिमा राशिद हैं, जो मुस्लिम परिवार से आती हैं। मुगल ए आजम स्टार मधुबाला का असली नाम मुमताज जहां बेगम है और मधुबाला की लोकप्रिय तो किसी सबूत की मोहताज नहीं है।
हरदिल अजीज मीना कुमारी का असली नाम महजबीं बानो है। ट्रैजेडी क्वीन के नाम से मशहूर इस खूबसूरत अदाकारा ने भी हिंदी जगत को बेहतरीन फिल्मों से नवाजा है। वाहिदा रहमान हिंदी जगत का एक ऐसा नाम है, जिसने तीन दशकों तक सिने खिड़की पर राज किया। तमिलनाडू से ताल्लुक रखने वाली वाहिदा रहमान के रास्ते में न तो ईमान और नाहीं धर्म कांटा बना। 60 और 70 के दशक की सबसे खूबसूरत अदाकारा और डांसर मुमताज भी तो मुस्लिम परिवार से संबंध रखती हैं। 90 के दशक में हिन्दी सिने जगत को मुस्लिम समुदाय से तब्बू मिली, जो आज भी सिने जगत में सक्रिय हैं।
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दिलचस्प बात तो यह है कि हिंदी सिने जगत को शुरूआती दिनों में केवल मुस्लिम अभिनेत्रियों का ही सहारा रहा है। हिंदू परिवारों से संबंध रखने वाली अभिनेत्रियों ने बाद में सिने जगत में कदम रखा। एक और दिलचस्प बात दिलीप कुमार, जो मुस्लिम परिवार से आते हैं, के बाद 90 के दशक में हिंदी सिने जगत को तीन सुपर स्टार मिले, सलमान खान, शाह रुख खान और आमिर खान, जो मुस्लिम परिवारों से संबंध रखते हैं और ढाई दशक से हिंदी जगत पर अंगद पैर जमाए हुए हैं। उनमें से एक तो जायरा वसीम के गॉडफादर भी हैं।
और जायरा वसीम कहती हैं कि धर्म के रास्ते से भटक गई थी। दरअसल, पांच साल में केवल दो फिल्में करना और अन्य प्रोडक्शन हाउसों से काम न मिलना। पारिवारिक और सामाजिक दबाव के बीच छोटी सी जान को संघर्ष करते हुए खुद को स्थापित करना असल में मुश्किल है।
जायरा वसीम कोई कबीर सिंह की गुडिया नहीं, जो दो पाटन में भी न पिसे। जायरा वसीम की हार या जीत से किसी को अधिक फर्क नहीं पड़ता। लेकिन, तब फर्क जरूर पड़ता है, जब कोई अपनी हार की जलेबी पर धर्म की चाश्नी चढ़ा देता है।
यदि अभिनय करना ईमान और धर्म को ख़तरे में डाल सकता है तो अभिनय को देखना भी ईमान और धर्म के लिए ख़तरा होना चाहिए। ऐसे में सलमान खान को ईद के मौके पर फिल्म रिलीज करने से बचाना चाहिए और देखने वालों को तो विशेषकर। लेकिन, हर कोई जायरा वसीम जैसा नहीं होता, जो पांच साल में ही समझकर धर्म के रास्ते पर चल दे।
मुबारक हो! जायरा वसीम तुम को नया सफर लेकिन, एक बार उन लड़कियों के बारे में जरूर सोचना, जो अपने कदमों पर खड़े होने के लिए अपने समाज से भी टक्कर लिए खड़ी हैं, जो सीक्रेट सुपरस्टार नहीं बल्कि सुपर स्टार बनने की तलब रखती हैं। जो पांच साल में हार मानकर घर लौटने की बजाय पचास साल तक संघर्ष करते हुए मरना चाहती हैं, लेकिन, अपने सपनों से समझौता नहीं करना चाहती।
- कुलवंत हैप्पी
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