अक्षत वर्मा की कालाकांडी — न वाह बात है न वाहियात है

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Mama’s Boys जैसी व्यंगात्मक शॉर्ट फिल्म का निर्देशन कर चुके पटकथा लेखक अक्षत वर्मा ने कालाकांडी से ​फीचर फिल्म निर्देशन में कदम रखा है। अक्षत वर्मा निर्देशित कालाकांडी में तीन कहानियां अलग अलग चलती हैं। हर कहानी के किरदार काफी रोचक और दिलचस्प हैं।

पहली कहानी : सैफ अली खान के घर शादी समारोह है। अचानक, सैफ को पता चलता है कि उसे पेट का कैंसर है। कुछ महीनों का मेहमान सीधा सरल जीवन जीने वाला सैफ अपने भाई से नशा की खुराक लेता है। घर से भाई के बाल कटवाने निकले सैफ को बीच रास्ते नशा चढ़ जाता है।

दूसरी कहानी : सोभिता धुलिपाला अपने प्रेमी के साथ अपनी सहेली की जन्मदिवस पार्टी में शामिल होने के लिए एक होटल में पहुंचती है। होटल में पुलिस की रेड पड़ जाती है और अपने दोस्तों समेत पुलिस को चकमा देकर भागने में सफल सोभिता धुलिपाला रास्ते में दो मोटर साइकिल सवारों को उड़ा देती है, और उसकी फ्लाइट छूटने में कुछ घंटों की देरी है।

तीसरी कहानी : दीपक डोबरियाल और विजय राज दोनों किसी और के लिए हफ्ता वसूली का धंधा करते हैं। दोनों जल्द से जल्द अमीर होना चाहते हैं। ऐसे में दोनों के दिमाग में प्लान आता है कि वह अपने मालक को मूर्ख बनाकर हफ्ता वसूली का पैसा हजम कर जाएंगे। इस बीच एक स्टाइलिश डॉन पर जानलेवा हमला होता है और उसकी मौत हो जाती है।

पहली और तीसरी कहानी का अंत उतनी खूबसूरती से नहीं किया, जितना दूसरी कहानी का किया गया है। हालांकि, सैफ अली खान और नारी सिंह की युगलबंदी, विजय राज और दीपक डोबरियाल की युगलबंदी के साथ साथ अक्षय ओबेरॉय और सोभिता धुलिपाला की मौजूदगी वाले सीन काफी बढ़िया हैं।

अक्षत वर्मा की कालाकांडी में सैफ अली खान और नारी सिंह की मुलाकात व विजय राज और दीपक डोबरियाल के संवाद पैसा वसूल हैं। स्टाइलिश डॉन के रूप में नील भूपालम का कैमियो भी मजेदार है।

कालाकांडी का निर्देशन और पटकथा लेखन दोनों ही बेहतरीन हैं। इसलिए तमाम खामियों के बावजूद फिल्म शुरू से अंत तक दिलचस्पी बनाए रखती है। इंग्लिश संवाद बड़ी मात्रा में हैं, जो अर्बन यूथ के लिए तो बढ़िया हैं। लेकिन, अंग्रेजी में हाथ तंग सिनेमा प्रेमियों का मजा किरकिरा करते हैं।

इसके अलावा फिल्म के अंत में काला डोरिया डांस नंबर है, जो माहौल के अनुसार अच्छा लगता है। बैकग्राउंड म्यूजिक बेहतरीन है। विजुअल इफेक्ट्स का अच्छा इस्तेमाल किया गया है।

एक अन्य बात जब तक आप सिनेमा हॉल में रहते हैं, तब तक कालाकांडी का सुरूर रहता है। फिल्म में चुटीले शब्दों और सैफ अली खान की पागलपंती के अलावा याद रहने जैसा कुछ नहीं है।

कुल मिलाकर कहा जाए, अक्षत वर्मा की कालाकांडी — न वाह बात है न वाहियात है। यदि आप सिनेमा केवल मनोरंजन के लिए देखते हैं और आपको हल्की फुल्की हंसी और हिंदी इंग्लिश संवादों वाली फिल्में अच्छी लगती हैं, तो सिनेमा घर में जाकर कालाकांडी देखना बुरा आइडिया नहीं होगा।

— कुलवंत हैप्पी