Movie Review : राकोश – एक उम्‍दा साइकलॉजिकल थ्रिलर ड्रामा

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2032

निर्देशक जोड़ी अभिजीत कोकाटे और श्रीविनय सालियन निर्देशित फिल्‍म ‘राकोश : यू आर नेवर अलोन’ पॉइंट ऑफ व्यू तकनीक से शूट होने वाली पहली भारतीय फिल्‍म है। इस फिल्‍म को शूट करने के लिए फिल्‍म के मुख्‍य किरदार बिरसा की आंखों को कैमरे के तौर पर इस्‍तेमाल किया गया है। साइकलॉजिकल थ्रिलर ड्रामा ‘राकोश : यू आर नेवर अलोन’ की पूरी कहानी बिरसा की आंखों से बयान होती है। राकोश की कहानी मराठी लेखक नारायण धारप की लघु कथा पेशंट नंबर 302 पर आधारित है।

फिल्‍म की कहानी को पागलखाने और बिरसा की जिंदगी के इर्दगिर्द बुना गया। सिज़ोफ्रेनिया से पीड़ि‍त बिरसा पागलखाने में बंद है। इस पागलखाने में बिरसा का सबसे अच्‍छा दोस्‍त कुमार जॉन है, जो पागलों की इस दुनिया में थोड़ा मोटा समझदार लगता है।

बिरसा और कुमार जॉन को लगता है कि एक सनकी डॉक्‍टर और मैंटल नर्स किसी राकोश के साथ मिलकर पागलखाने में रहने वाले पागलों को चुन चुनकर मारते हैं। बिरसा और कुमार जॉन दोनों राकोश को पकड़ने के लिए अपने स्‍तर पर प्रयास करना शुरू करते हैं। जब भी सनकी डॉक्‍टर और मैंटल नर्स आती तो बिरसा दौड़कर कुमार जॉन के पास आता और भविष्‍य में मरने वाले व्‍यक्ति की फोटो दिखाने को बोलता है।

दूसरी ओर, इस पागलखाने से लापता होने वाले पागलों का सच बाहर लाने के लिए एक खोजी पत्रकार भी अपने मिशन पर है, जिसको कुमार जॉन अपनी बेटी बुलाता है और बिरसा हमेशा उसको कुमार जॉन की नकली बेटी बुलाता है। कहानी में जबरदस्‍त ट्विस्‍ट उस समय आता है, जब पागलखाने में समाज सेवी कार्यकर्ता बनकर घूम रही खोजी पत्रकार का सच पालगखाने अधिकारियों के सामने आ जाता है। और उधर, राकोश के हाथों कुमार जॉन मारा जाता है। पागलखाने वाले कुमार जॉन की मौत को हादसा बताते हैं। पर, बिरसा खोजी पत्रकार को कुछ ऐसा देता है, जो उसको अंदर तक हिलाकर रख देता है।

क्‍या कुमार जॉन की मौत हादसा है? क्‍या पागलखाने में होने वाली मौतों के पीछे पागलखाने अध‍िकारियों का हाथ है? ऐसे तमाम सवालों के जवाब जानने के लिए आपको राकोश देखनी होगी।
कुमार जॉन के किरदार में संजय मिश्रा का अभिनय बाकमाल है। संजय मिश्रा के हाव भाव और उनकी संवाद शैली उनके किरदार को बेजोड़ बना देती है। बिरसा के किरदार को नमित दास ने अपनी आवाज दी है। इसके अलावा पागलखाने के भ्रष्‍ट अधिकारी के किरदार में अतुल महाले, पत्रकार के किरदार प्रियंका बोस और बिरसा की दीदी के किरदार में तनिष्ठा चटर्जी ने भी सराहनीय काम किया है।

श्रीविनय सालियन ने फिल्‍म का निर्देशन करने के साथ साथ पटकथा लेखन का जिम्‍मा भी संभाला था। फिल्‍म के संवाद उम्‍दा हैं। निर्देशक के तौर पर अभिजीत कोकाटे और श्रीविनय सालियन की जोड़ी ने बेहतरीन काम किया है। फिल्‍म शुरू से अंत तक जकड़े रखती है। कहानी को विस्‍तार देने के लिए फ्लैशबैक का इस्‍तेमाल भी किया गया है।

राकोश : यू आर नेवर अलोन की खूबसूरत बातों में इसका फिल्‍मांकन भी शामिल है, जिसको Basile Pierrat ने अंजाम दिया है। कुछ सीन तो इतने बेहतरीन शूट किए गए हैं कि आपकी आंखें दंगकर रह जाएंगी। फिल्‍म का नायक कैमरा है और इस कैमरे को Basile Pierrat ने बाखूबी संभाला है।

साइकलॉजिकल थ्रिलर ड्रामा राकोश : यू आर नेवर अलोन मनोरंजन के साथ साथ एक संदेश भी छोड़ती है। फिल्‍म का अंत उसी संवाद के साथ होता है, जिसके साथ फिल्‍म का आरंभ होता है।