शकुंतला देवी ह्यूमन कंप्यूटर के नाम से मशहूर शकुंतला देवी के हुनर की कहानी से कहीं ज्यादा है। अनु मेनन की शकुंतला देवी एक ऐसी औरत की कहानी है, जो बचपन से ही बड़ा आदमी नहीं बड़ी औरत बनना चाहती है। अनु मेनन ने कहानी के केंद्र में मां बेटी के रिश्तों को रखा है, जो इसे फैमिली और इमोशनल ड्रामा बनाता है।
शकुंतला देवी की कहानी का आरंभ, सकुंतला देवी की बेटी अनुपमा उसके खिलाफ क्रिमनल केस दायर करती है, से होता है। इसके बाद कहानी फ्लैशबैक के साथ अतीत की ढलानों पर उतर जाती है, जहां बालिका शकुंतला अपने घर के आंगन में खेल रही है और एक सवाल को चुटकियों में हल करके पूरे घर को चौंका देती है।
![](https://filmikafe.com/wp-content/uploads/2020/07/ShakuntalaDevi_Vidya_Balan.jpg)
शकुंतला बचपन से काफी तेज तर्रार और मुंहफट रहती है। शकुंतला का कंप्यूटर से तेज दिमाग घर वालों के लिए आजीविका का साधन बनता है। स्कूल स्कूल जाकर शो करने वाली शकुंतला खुद स्कूली पढ़ाई से वंचित रह जाती है।
शकुंतला को पहला झटका तब लगता है, जब वो बचपन में अपनी बड़ी बहन को खो देती है। बड़ी बहन की मौत के साथ ही शकुंतला के मन में बाबा के साथ साथ मां के प्रति भी नफरत भर जाती है। यौवन के दिनों में प्यार में धोखा खाने के बाद शकुंतला विदेश जाती है और अपने हुनर से पैसे कमाने का जुगाड़ करते करते एक स्पेनिश मित्र की बदौलत सेलिब्रिटी बन जाती है। पर, शकुंतला को दौलत शोहरत दिलाने के बाद वो भी उसको छोड़कर चला जाता है।
शकुंतला के जीवन में एक नए पुरुष परिदोष का प्रवेश होता है, जिससे शकुंतला केवल बच्चा लेना चाहती है। शकुंतला मां बनना चाहती है। लेकिन, नया शख्स शकुंतला से प्यार करने लगता है और शकुंतला मां बन जाती है। इस नए जीवन के आनंद के बीच शकुंतला को उसका अपना पुराना इश्क अर्थात चुटकियों में गणित सवाल करने का हुनर पुकारने लगता है।
शकुंतला को उसका साथी फिर से शो करने की अनुमति दे देता है, यह वायदा करते हुए कि वो उसकी बेटी को संभाल लेगा। लेकिन, एक दिन शकुंतला को पता चलता है कि उसकी बेटी ने बोलना शुरू कर दिया और उसने पहला शब्द मां नहीं बाबा बोला है।
यह बात शकुंतला को कांटने की तरह चुभती है। शकुंतला बेटी को अपने साथ रखने की जिद्दी पर अड़ जाती है और शकुंतला अपनी बेटी को लेकर शहर शहर घूमती है। बेटी और शकुंतला का जीवन बंजारों सा हो जाता है। जहां शकुंतला को बंजारा सा जीना पसंद आता है, वहीं, उसकी बेटी अनुपमा के लिए यह जीवन उबाऊ है। अनुपमा अपने पिता अर्थात शकुंतला के साथी को मिस करती है।
इस कश्मकश में बेटी अनुपमा जवान हो जाती है और मनमर्जी से शादी कर लेती है। शकुंतला देवी से बात बंद कर देती है। दोनों में रिश्ते तनावपूर्ण हो जाते हैं। इस दौरान कुछ ऐसा घटित होता है, फिल्म उसी जगह आकर खड़ी हो जाती है, जहां से फिल्म आरंभ होती है।
अनुपमा अपनी मां शकुंतला के खिलाफ क्रिमनल केस क्यों करना चाहती है? शकुंतला अपनी बेटी अनुपमा के क्रिमनल केस का जवाब किस तरह देगी? को जानने के लिए शकुंतला देवी देखिए।
अनु मेनन ने निर्देशन के साथ साथ स्क्रीन प्ले लिखने में भी नयनिका महतानी का हाथ बंटाया है। कलाकारों के सटीक चयन ने अनु मेनन के निर्देशन कार्य को सरल बनाया। फिल्म का संपादन बेहतरीन हुआ है और फिल्म संवादों पर इशिता मोइत्रा ने बेहतरीन काम किया है। फिल्म का कैमरा वर्क काफी अच्छा है। हालांकि, गीत संगीत के मामले में फिल्म मात खाती है।
शकुंतला देवी के किरदार में विद्या बालन ने जान डालती है। इस किरदार को विद्या बालन के बेहतरीन किरदारों में से एक कहा जा सकता है। अनुपमा के किरदार में सान्या मल्होत्रा का काम सराहनीय है। अजय के किरदार के लिए अमित साध का चयन सटीक है। सकुंतला के साथी के किरदार में जीशु सेनगुप्ता की उपस्थिति उल्लेखनीय है।
फिल्म शकुंतला देवी की कहानी भारत और भारत के बाहर सेट की गई है, ऐसे में इंग्लिश संवादों की भरमार है, जो सामान्य हिंदी सिने प्रेमी के सर के ऊपर से गुजर सकते हैं और मजा किरकिरा कर सकते हैं। हालांकि, फिल्म गति अपनी इस कमी पर काफी हद तक पर्दा डालती है। फिल्म का अंत काफी भावनात्मक है, हो सकता है कि आपकी आंखों में अपने आप आंसू आ जाएं।
सकुंतला देवी बताती है कि चाहे बड़ी औरत बनो या बड़ा आदमी, दौलत शोहरत के साथ चुनौतियां भी आपके जीवन में आती हैं और यह आप पर निर्भर है कि आप इनसे कैसे पार पाते हैं।