क्‍या उरी हमले की आढ़ में बॉलीवुड में हो रही है ब्‍लैकमेलिंग?

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18 सितंबर 2016 को जम्मू और कश्मीर के उरी सेक्टर में एलओसी के पास स्थित भारतीय सेना के स्थानीय मुख्यालय पर एक आतंकी हमला हुआ, जिसमें 18 जवान शहीद हो गए। इस हमले ने भारत को ही नहीं पूरे विश्‍व को आतंकवाद के खिलाफ सोचने पर मजबूर कर दिया। भारत और पाकिस्‍तान के बीच संबंध एक बार फिर से तनावपूर्ण होते हुए नजर आ रहे हैं। भारत सरकार अपने स्‍तर पर हरसंभव प्रयास कर रही है ताकि भविष्‍य में इस तरह की गतिविधियों को रोका जाए।

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लेकिन, उरी हमले को लेकर मुम्‍बई में कुछ अलग खिचड़ी पकती हुई नजर आ रही है। उरी हमले के कुछ दिन बाद पाकिस्‍तानी कलाकारों पर प्रतिबंध लगाने की मांग उठती है। मुम्‍बई में पाकिस्‍तानी कलाकारों को भारत छोड़ने के लिए 48 घंटों का अल्‍टीमेटम दिया जाता है। हैरानी तब होती है जब इस अल्‍टीमेटम को भारतीय सरकार नहीं, बल्‍कि मुम्‍बई का एक राजनीतिक संगठन महाराष्‍ट्र नवनिर्माण जारी करता है।

किसी विवाद में पड़ने से अच्‍छा है कि दूर रहा जाए यह सोचकर बहुत सारे पाकिस्‍तानी कलाकार अपने नगर को निकल गए। मगर सोचने वाली बात तो यह है कि किस देश के कलाकारों पर प्रतिबंध लगाना है और किस पर नहीं लगाना, यह देश की सरकार तय करती है, नहीं कि गली मुहल्‍ले के नेता। मगर, अफसोस हमारे देश में ऐसा काम कुछ गली के अधना नेता लोग करते हैं, जिनके पास खोने को कुछ नहीं और अमीर कामकाजी लोग अपनी जान माल की सलामती के लिए उनके आगे घुटने टेक देते हैं।

इस मामले में दिलचस्‍प मोड़ तब आया, जब मनसे कार्यकर्ताओं ने एक प्रेस कांफ्रेंस बुलाकर करन जौहर की ए दिल है मुश्‍किल और फरहान अख्‍तर की रईस को निशाना बनाते हुए कहा कि इनमें से पाकिस्‍तानी कलाकारों को हटाओ। यदि ऐसा नहीं हुआ तो फिल्‍म को रिलीज नहीं होने दिया जाएगा।

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सोचने वाली बात है कि दोनों फिल्‍में उरी हमले से पहले ही बनकर तैयार हो गईं थी। एक दीवाली पर रिलीज होने जा रही है तो दूसरी अगले साल। हालांकि, अभिनेता शाह रुख खान अभिनीत रईस तो इस साल जुलाई में रिलीज होने वाली थी, लेकिन किसी कारणवश फिल्‍म की रिलीज डेट खिसकती गई।

जो मांग मनसे कार्यकर्ताओं ने प्रेस बयान के जरिये रखी है। दरअसल, वो मांग स्‍वीकार करने जैसी नहीं क्‍योंकि उस मांग को स्‍वीकार करना फिल्‍म निर्माताओं के लिए आर्थिक तौर पर खुद को क्षति पहुंचाना है क्‍योंकि फिल्‍म को फिर से शूट करना होगा, विशेषकर उन दृश्‍यों में जिनमें पाकिस्‍तानी कलाकार हैं।

fawad-khan-mahira-khanफिल्‍मकार करन जौहर की ‘ए दिल है मुश्‍किल’ तो इसीी दीवाली पर रिलीज होनी है। करन जौहर के लिए फिल्‍म को रीशूट करना तो और भी मुश्‍किल है। ऐसे में बीच का रास्‍ता निकलना होगा। भारत में हमेशा बीच का रास्‍ता कुछ ले देकर निकलता है।

तो ऐसे में एक ही सवाल मन में उठता है कि क्‍यों मनसे जैसे समूह उन फिल्‍मों को निशाना बना रहे हैं, जो बहुत पहले पाकिस्‍तानी कलाकारों के साथ शूट की जा चुकीं हैं? आखिरकर निर्माता निर्देशकों को इस तरह मीडिया के जरिये मांग रखकर अप्रत्‍यक्ष रूप से चेताने के पीछे की मंशा क्‍या है? या मान लिया जाए कि उरी हमले में शहीद हुए जवानों की आड़ में पाकिस्‍तानी कलाकार बैन करो का नारा मारकर रोजी रोटी का जुगाड़ किया जा रहा है?