सरकारी स्कूलों की हालत किसी से छिपी नहीं है। किसी स्कूल में शिक्षक नहीं हैं, तो किसी स्कूल में छात्र नहीं है। वहीं, कुछ ऐसे स्कूल भी हैं, जहां दोनों हैं, पर मूलभूत सुविधाएं नहीं हैं। ऐसी हालत भारत के किसी एक राज्य के सरकारी स्कूलों की नहीं, बल्कि पूरे भारत में कमोबेश एक सी हालत है। बस 19-20 का फर्क हो सकता है।
राचसी की कहानी भी एक ऐसे ही सरकारी स्कूल को केंद्र में रखकर लिखी गई है, जहां शिक्षक हैं, छात्र हैं, लेकिन, स्कूल जैसी कोई बात नजर नहीं आती। इस सरकारी स्कूल की तकदीर उस समय खुलने लगती है, जब वहां एक नई प्रधानाध्यापिका गीता रानी की नियुक्ति होती है।
पर, एकदम तारोताजा कहानी आधारित राचसी देखने के बाद सोचने लगता हूं कि राजसी को एक अनूठी प्रेमिका की कहानी हूं, एक सुधारवादी महिला की कहानी कहूं, एक होनहार बेटी की कहानी कहूं या फिर एक सरकारी स्कूल की प्रधानाध्यापिका की कहानी, जो चुनौतियों से लड़ते हुए एक केवल नाम के स्कूल को राज्य के सबसे बेहतरीन स्कूलों की लाइन में लाकर खड़ा कर देती है।
गौतमराज की लिखी और निर्देशित फिल्म राचसी में गीता रानी तो एक ही है। पर, कहानी जैसे जैसे आगे बढ़ती है तो गीता रानी के कई रूप निकल कर सामने आते हैं। पहली नजर में अड़ियल और दंभी दिखने वाली प्रधानाध्यापिका गीता रानी भीतर से एकदम नारियल सी है, इस बात का खुलासा उस समय होता है, जब पिता का अंतिम संस्कार करने के तुरंत बाद गीता रानी सीधे स्कूल पहुंचती है और अपने ऑफिस में बैठकर अपने पिता के देहांत पर रोने लगती है।
गीता रानी एक अच्छी बेटी नहीं, बल्कि एक आदर्श प्रेमिका भी है। इस बात का खुलासा उस समय होता है, जब गीता रानी छुट्टियां खत्म होने के बाद स्कूल परिसर में पहुंचती है। जहां उसकी मुलाकात स्कूल परिसर में पहले से मौजूद वरिष्ठ शिक्षिका सुशीला से होती है, जो सेवामुक्त होने जा रही हैं।
जिस स्कूल परिसर में गीता रानी का किरदार आकार लेता है, उसी स्कूल परिसर से पुलिस गीता रानी को हथकड़ी लगाकर ले जाती है। गीता रानी का कसूर इतना है कि सुधारवादी सोच की अगुआ ने स्कूल का चार्ज संभालते ही सरकारी नियमों को ताक पर रखते हुए 9वीं कक्षा में फेल कर दिए गए गरीब बच्चों को 10वीं कक्षा की परीक्षा में बिठा दिया था।
सरकारी नियमों को ताक पर रखकर गरीब बच्चों का जीवन संवारने निकली गीता रानी की कहानी का अंत क्या होगा? को जानने के लिए राचसी देखें।
गीता रानी के किरदार में ज्योतिका सटीक बैठती हैं। ज्योतिका के हाव भाव और शारीरिक भाषा दोनों ही विशेषताएं किरदार को दमदार बनाती हैं। वरिष्ठ शिक्षिका के किरदार में पूर्णिमा भाग्यराज का अभिनय भी प्रभावशील है। बाल कलाकार कमलेश का अभिनय भी दिल जीतने वाला है। इसके अलावा अन्य कलाकारों ने भी बेहतरीन काम किया है।
राचसी की पटकथा को काफी गंभीरता और संजीदगी के साथ लिखा गया है। इसका अंदाजा फिल्म देखते हुए होता है। फिल्म देखते हुए कुछ सवाल आपके दिमाग में उठेंगे, पर, कहानी खत्म होने से पहले आपको उनका उत्तर मिल जाएगा। राचसी की कहानी में प्रेम संबंध को सरप्राइजिंग एलिमेंट के रूप में इस्तेमाल किया गया है, जो फिल्म की कहानी को सार्थक बनाता है। सबसे अच्छी बात यह है कि शिक्षा से जैसे गंभीर विषय पर बनी फिल्म को मसाला फिल्म बनाने की कोशिश नहीं की गई।
निर्देशक के तौर पर गौतमराज का काम सराहनीय है। गौतमराज ने ज्योतिका के अलावा अन्य कलाकारों से बेहतरीन काम लिया है, विशेषकर बाल कलाकारों से। गीता रानी काफी खूबसूरत हैं, जिस पर स्कूल का कोई भी टीचर या छात्र फिदा हो सकता है, पर, गौतमराज ने मनोरंजन तत्व का ख्याल रखते हुए राचसी में गीता रानी पर एक बाल छात्र के क्रश को क्रिएट किया, जो फिल्म का खूबसूरत हिस्सा कहा जा सकता है।
यदि आप सकारात्मक और परिवारिक फिल्मों को देखना पसंद करते हैं, तो ज्योतिका अभिनीत तमिल फिल्म राचसी एकदम बेहतरीन फिल्म है, जो शिक्षा जैसे गंभीर विषय पर होने के बावजूद भी आपको बोर नहीं करेगी।